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India Daily

Russia Ukraine War: 'दो लाख रुपये कमाने गए थे, भयानक जख्म लेकर लौटे': यूक्रेन की तरफ से लड़ने वाले भारतीय लड़ाकों ने सुनाई आपबीती

राकेश और ब्रजेश यादव की कहानी रूस में धोखाधड़ी और युद्ध में फंसे भारतीयों की दर्दनाक स्थिति को उजागर करती है. जहां एक ओर उन्हें बेहतर जीवन का सपना दिखाया गया, वहीं दूसरी ओर उन्हें युद्ध की भयंकर दहशत का सामना करना पड़ा और उनके साथ विश्वासघात किया गया.

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Edited By: Mayank Tiwari
रूस में काम करने के नाम पर धोखाधड़ी
Courtesy: Social Media

Russia Ukraine War:  रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध कई भारतीयों के लिए काल बन गया है. जहां अच्छी सैलरी पर नौकरी करने गए रूस गए भारत के सैकड़ों युवकों को सैनिक बनाकर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उतार दिया गया है. जिसमें उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और मऊ जिले के कई लोग नौकरी की तलाश में जनवरी 2024 में एजेंटों के जाल में फंस कर रूस चले गए थे. 

वहीं,  राकेश (29) और ब्रजेश (30) यादव उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ और मऊ के निवासी हैं. पहले वे अपने परिवार की रोज़ी-रोटी के लिए घरों की पेंटिंग करते थे, जो मुश्किल से ही उनके परिवारों के खर्चे पूरे कर पाते थे. तभी उन्हें रूस में सुरक्षा गार्ड की नौकरी का एक प्रस्ताव मिला, जिसमें उन्हें महीने के 2 लाख रुपये दिए जाने की बात कही गई थी. यह प्रस्ताव उनके लिए एक सुनहरा मौका लगता था, लेकिन रूस ने उनकी ज़िंदगी बदल दी—लेकिन उस तरीके से नहीं, जैसा उन्होंने सोचा था.

रूस में जीवन की सच्चाई

जनवरी 2024 में रूस पहुंचे राकेश और ब्रजेश ने TOI से बात करते हुए बताया कि रूस में पहुंचते ही उनका शारीरिक परीक्षण किया गया और फिर उन्हें गुप्त स्थानों पर 15 दिनों के लिए आधुनिक हथियारों से मुकाबला प्रशिक्षण दिया गया. इसके बाद उन्हें सैन्य ट्रकों में सवार कर सीमा पर यूक्रेनी सैनिकों के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए भेज दिया गया. राकेश ने कहा, "हमारी यात्रा ने एक बुरे सपना जैसा रूप लिया. हम पूरी तरह से इस स्थिति में नहीं थे.

राकेश और ब्रजेश ने रूस में कई महीनों तक अस्पतालों में इलाज करवाया, लेकिन उन्हें यह भी नहीं पता था कि वे कब वापस घर लौट सकेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद, फिलहाल, वे भारत वापस आ पाए.

धोखाधड़ी और युद्ध की दहशत

राकेश और ब्रजेश अब घर लौटने के बाद भी युद्ध और धोखाधड़ी के आघात से उबरने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. दोनों ने बताया कि तीन भारतीय एजेंटों ने उन्हें रूस की सेना में काम करने के लिए धोखा दिया था. इन एजेंटों ने उनका अधिकतर कमाया हुआ पैसा हड़प लिया, जबकि दोनों अपनी जान जोखिम में डालकर रूस-यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर थे.

राकेश ने कहा, "हम 17 जनवरी 2024 को रूस पहुंचे. हमारे एजेंट सुमित और दुश्यंत ने एक रूसी नागरिक की मदद से हमारे नाम पर बैंक खाते खोले और हमें 7 लाख रुपये भेजे. यह अच्छा लग रहा था, लेकिन जल्द ही एजेंटों ने हमारे बैंक डिटेल्स और डेबिट कार्ड ले लिए.

रूस-यूक्रेन युद्ध में उनकी भागीदारी

राकेश और ब्रजेश ने बताया कि शुरुआत में उन्हें केवल हथियारों और गोला-बारूद को ट्रकों में लोड करने, बंकरों को साफ करने और खाना पकाने जैसे काम सौंपे गए थे. लेकिन जब रूस को युद्ध में भारी नुकसान हुआ, तो उन्हें हथियार उठाने के लिए मजबूर किया गया. राकेश ने बताया कि उसे रूस-यूक्रेन सीमा के पास सुदज़ा में लड़ाई में भेजा गया. यहां वह एक ड्रोन हमले में घायल हो गया.

"मैं एक मिशन पर था, जिसमें हमें एक रूसी सैन्य कमांडर को बचाना था, तभी मुझे ड्रोन हमले में चोट लगी," राकेश ने कहा उसे और अन्य घायल सैनिकों को चेचेन-नियंत्रित अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां एक सैनिक की मौत हो गई और बाकी को फिर से मोर्चे पर भेज दिया गया। राकेश अस्पताल में रहे और अंततः भारतीय दूतावास से मदद प्राप्त की, जिससे वह भारत वापस लौट पाए।

ग़लत अनुभव और जीवनभर का मानसिक आघात

ब्रजेश ने कहा, "मैंने पहले मलेशिया और दुबई में काम किया था, लेकिन रूस का अनुभव एक बुरा सपना था. मैं दो महीने तक अस्पताल में रहा और फिर मुझे वहां से बाहर निकाला गया. राकेश ने कहा कि युद्ध के अनुभव और धोखाधड़ी के कारण वे मानसिक रूप से टूट चुके हैं और इस भयावह अनुभव से उबरने में समय लगेगा.