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Sonam Wangchuk Protest Ends: 21 दिनों बाद सोनम वांगचुक ने खत्म किया अपना आमरण अनशन, जानें किस मांग के चलते कर रहे थे भूख हड़ताल

Sonam Wangchuk Protest Ends: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे सोनम वांगचुक ने 21 दिन बाद अपना अनशन खत्म कर दिया है.

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Sonam Wangchuk

Sonam Wangchuk Protest Ends: जानी-मानी शख्सियत सोनम वांगचुक, जो एक इंजीनियर और शिक्षा सुधारक भी हैं, ने 21 दिन की लंबी भूख हड़ताल खत्म कर दी है. प्रसिद्ध इंजीनियर और शिक्षा सुधारक वांगचुक ने 6 मार्च से अपनी भूख हड़ताल शुरू की थी. वांगचुक ने यह हड़ताल लद्दाख को भारत का पूर्ण राज्य बनाने और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर शुरू की थी.

उनका विरोध प्रदर्शन लद्दाख की राजधानी लेह में 3500 मीटर की ऊंचाई पर किया गया, जहां का तापमान जमाव बिंदु से 10 डिग्री सेल्सियस नीचे रहना आम बात है. कड़ाके की ठंड और कठिन परिस्थितियों के बावजूद वांगचुक अपने मिशन के प्रति अडिग रहे. हड़ताल खत्म करने से पहले वांगचुक ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक भावुक अपील की. उन्होंने लिखा कि उनकी भूख हड़ताल के 21वें दिन भीषण सर्दी में 350 लोग उनके साथ रहे और दिन में तो यह संख्या 5000 तक पहुंच गई. 

सरकार ने अभी तक मांग पर नहीं दिया कोई ध्यान

वांगचुक ने लिखा, 'सरकार की तरफ से अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. इस देश को दूरदृष्टि और बुद्धिमानी रखने वाले नेताओं की जरूरत है, ना कि स्वार्थी राजनेताओं की. मैं उम्मीद करता हूं कि नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी जल्द ही साबित करेंगे कि वे दूरदृष्टि रखने वाले नेता हैं...'

आखिर क्यों भूख हड़ताल पर थे सोनम वांगचुक

वांगचुक की यह भूख हड़ताल किसी आरामदेह जगह में नहीं हो रही थी. उन्होंने लद्दाख की ऊंचाई वाले इलाके में ये विरोध प्रदर्शन किया, जहां का तापमान जमाव बिंदु से नीचे रहता है. वो इस क्षेत्र के नाजुक पर्यावरण को औद्योगीकरण से होने वाले खतरे और ग्लेशियरों पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को लगातार उजागर कर रहे थे. भूख हड़ताल के दौरान वांगचुक ने सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए लगातार सरकार से लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची को लागू करने की मांग की.

छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों को विशेष दर्जा प्रदान करती है, जिससे उन्हें भूमि और सांस्कृतिक सुरक्षा मिलती है. वांगचुक का मानना है कि यह अनुसूची लद्दाख के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र और वहां की समृद्ध आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने में मददगार होगी. शुरुआत में भले ही सरकार से कोई प्रतिक्रिया ना आई हो, लेकिन वांगचुक की भूख हड़ताल ने धीरे-धीरे पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं और समर्थन जुटाया.

21 दिनों में करीब 3 लाख लोगों ने दिया वांगचुक को अपना समर्थन

पिछले 20 दिनों में लद्दाख के 3 लाख लोगों में से तकरीबन 60,000 लोग उनके आंदोलन में शामिल हुए. वांगचुक का कहना है कि ये समर्थन लद्दाख के लोगों के दर्द को बयां करता है, मगर "सरकार की तरफ से एक शब्द भी नहीं आया."

हालांकि केंद्र सरकार से अब तक कोई ठोस जवाब नहीं आया है, लेकिन वांगचुक ने अपना अनशन खत्म करते हुए कहा कि उनका संघर्ष जारी रहेगा. वांगचुक की भूख हड़ताल भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन यह मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है. यह देखना बाकी है कि क्या आने वाले समय में केंद्र सरकार लद्दाख के लोगों की मांगों पर ध्यान देगी.