Shirk in Islam: केरल के त्रिशूर जिले से हाल ही में एक मामला सामने आया है जिसने धार्मिक बहस को और तेज़ कर दिया है. एक मुस्लिम महिला टीचर ने अपने छात्रों को ओणम समारोह से दूर रहने की नसीहत दी है. उनका कहना था कि गैर-मुस्लिम त्योहारों में शामिल होना ‘शिर्क’ है. इस बयान के बाद उन पर FIR दर्ज की गई और उन्हें नौकरी से भी सस्पेंड कर दिया गया है. यह घटना अब एक बड़े सामाजिक और धार्मिक विमर्श का विषय बन गई है.
‘शिर्क’ शब्द अरबी भाषा से आया है, जिसका अर्थ है किसी को अल्लाह के साथ साझीदार बनाना. इस्लाम का मूल सिद्धांत एकेश्वरवाद यानी अल्लाह की एकता है. कुरआन और हदीस में साफ लिखा गया है कि अल्लाह की इबादत और उसकी प्रभुता में किसी को उसका बराबर मानना सबसे बड़ा गुनाह है. कुरआन कहता है, 'अल्लाह के लिए (इबादत में) किसी को मुकाबला/ शरीक न करो, जबकि तुम जानते हो कि (उसे ही इबादत का हक है)' )
एक हदीस में भी साफ कहा गया है, 'जो कोई यह दावा करते हुए मर जाएगा कि अल्लाह के अलावा भी कोई सर्वशक्तिमान है... वह नर्क में जाएगा.' यह सवाल लंबे समय से मुस्लिम समाज में बहस का मुद्दा रहा है. कुछ उलेमा मानते हैं कि किसी भी गैर-इस्लामी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेना शिर्क है, जबकि दूसरी राय यह है कि सामाजिक सद्भाव और साथ रहने के लिहाज से इसमें कोई पाप नहीं है.
मुफ्ती शमशुद्दीन नदवी का कहना है, 'इस्लाम में सब कुछ आपकी नियत पर निर्भर करता है. अगर कोई मुसलमान ओणम, होली-दीवाली जैसे पर्व में शामिल होता है, लेकिन दिल से किसी देवी-देवता को ईश्वर नहीं मानता है, तो यह शिर्क नहीं है. यह केवल सामाजिक शिष्टाचार है.'
वहीं मुफ्ती अब्दुर्रहीम कासमी कहते हैं, 'न टोपी पहनने से कोई हिंदू मुसलमान हो जाता है, न ही टीका लगाने से मुसलमान हिंदू बन जाता है. धर्म अंतरात्मा से जुड़ा मामला है. अगर कोई व्यक्ति दूसरे धर्म के पर्व में शामिल होता है लेकिन उसकी आस्था वहीं रहती है, तो यह शिर्क नहीं होगा.'
उलेमा की राय के अनुसार, यदि कोई मुसलमान किसी गैर-मुस्लिम त्योहार में शामिल होते हुए यह मान ले कि उसकी समृद्धि, धन या जीवन की भलाई किसी अन्य देवी-देवता के हाथ में है, तो यह शिर्क माना जाएगा. लेकिन केवल सांस्कृतिक तौर पर शामिल होना या मिठाई खाना, दीप जलाना या दोस्त की खुशी में शरीक होना इस्लामिक सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है.
त्रिशूर की शिक्षिका द्वारा छात्रों को व्हाट्सऐप पर ओणम से दूर रहने की अपील करना कई लोगों को असहज लगा. एक तरफ जहां कुछ ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा बताया, वहीं दूसरी तरफ इसे बच्चों पर धार्मिक विचार थोपने की कोशिश माना गया. यही वजह है कि मामला पुलिस और प्रशासन तक पहुंचा और शिक्षिका पर कार्रवाई हुई.