संसद के शीतकालीन सत्र में शुक्रवार का दिन कई अहम विधायी प्रस्तावों का गवाह बना. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया, जिसने राष्ट्रीय बहस को नया आयाम दिया. थरूर ने स्पष्ट कहा कि शादी किसी महिला की सहमति या असहमति के अधिकार को बदल नहीं सकती. इसके साथ ही उन्होंने दो और बिल पेश किए, जिनमें कार्यस्थल पर ओवरवर्क से सुरक्षा और राज्यों के पुनर्गठन पर स्थायी आयोग की स्थापना शामिल है.
शशि थरूर ने कहा कि भारत के कानूनी ढांचे में marital rape को लेकर बड़ी कमी है और अब इसे दूर करने का समय आ गया है. उनका कहना था कि “No Means No” की जगह “Only Yes Means Yes” का सिद्धांत अपनाया जाना चाहिए ताकि महिलाओं को विवाह के भीतर भी शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार मिले.
थरूर द्वारा पेश बिल में कहा गया कि विवाह किसी भी स्थिति में महिला की सहमति को अमान्य नहीं कर सकता. उन्होंने जोर दिया कि marital rape वैवाहिक संबंध का नहीं बल्कि हिंसा का सवाल है, और इस अपवाद को हटाना भारत की संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है.
एक अन्य बिल में थरूर ने कार्यस्थल पर अत्यधिक काम के बोझ को गंभीर खतरा बताया. उन्होंने पुणे में EY की कर्मचारी अन्ना सेबेस्टियन की मौत का ज़िक्र करते हुए कहा कि 49 घंटे से ज्यादा काम कर रही 51% वर्कफोर्स burnout का सामना कर रही है, जिसे कानून द्वारा नियंत्रित किया जाना जरूरी है.
थरूर ने तीसरा प्राइवेट मेंबर बिल पेश करते हुए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पुनर्गठन के लिए स्थायी आयोग की मांग की. उनका तर्क था कि भविष्य में किसी भी राज्य या क्षेत्र के गठन या बदलाव के लिए जनसंख्या, प्रशासनिक क्षमता, आर्थिक व्यवहार्यता और जनता की इच्छा जैसे पहलुओं का वैज्ञानिक आकलन जरूरी है.
प्राइवेट मेंबर बिल वह होता है जिसे किसी सांसद द्वारा पेश किया जाए, न कि सरकार के किसी मंत्री द्वारा. ऐसे बिलों के जरिए सांसद जनता से जुड़े मुद्दों को सामने लाते हैं, हालांकि इनके कानून बनने की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है.