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विश्वयुद्ध के कारण 'राष्ट्रवाद' से डरने लगे विदेशी, मोहन भागवत ने क्यों कही ये बात?

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में कहा कि भारत की परंपरा विवादों में नहीं, बल्कि भाईचारे, सद्भाव और एकता में विश्वास करती है. उन्होंने बताया कि भारतीय राष्ट्र की अवधारणा पश्चिम से अलग है और भारत भविष्य में वास्तविक वैश्वीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा.

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Edited By: Kanhaiya Kumar Jha
Mohan Bhagwat India Daily
Courtesy: X/@nbt_india

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव में कहा कि भारत की मूल प्रकृति एकता, सद्भाव और भाईचारे की है. उन्होंने कहा कि देश का स्वभाव विवादों में उलझना नहीं, बल्कि विभिन्न विचारों और संस्कृतियों को साथ लेकर चलना है.

'हमारा किसी से विवाद नहीं, एकजुट रहना हमारी परंपरा'

भागवत ने कहा कि भारत ने हमेशा मतभेदों के बावजूद संवाद और सहयोग का रास्ता अपनाया है. उन्होंने बताया कि दुनिया के कई देशों का विकास संघर्षों और टकराव के माहौल में हुआ है, वहीं भारत की सोच कभी भी टकराव आधारित नहीं रही.

उन्होंने कहा कि एक बार जब दुनिया के कुछ हिस्सों में कोई विचारधारा बन जाती है, तो उससे हटकर कोई भी विचार स्वीकार नहीं किया जाता. इसी कारण वे अलग विचारों को ‘वाद’ का नाम देकर सीमित कर देते हैं.

भारतीय ‘राष्ट्र’ की अवधारणा पश्चिम से अलग

RSS प्रमुख ने कहा कि भारत में राष्ट्र का अर्थ पश्चिमी देशों की परिभाषा से बिल्कुल अलग है. उन्होंने बताया कि पश्चिम के अनुसार राष्ट्र वह है, जहां एक शासन व्यवस्था एक क्षेत्र पर नियंत्रण रखती है. लेकिन भारत में अलग-अलग राजाओं और शासन व्यवस्थाओं के बावजूद देश हमेशा एक राष्ट्र की तरह रहा है.

उन्होंने कहा कि पश्चिम हमारी राष्ट्र अवधारणा को ठीक से नहीं समझ पाया, इसलिए उसे ‘राष्ट्रवाद’ कहने लगा. भागवत ने कहा कि भारत ‘राष्ट्रवाद’ नहीं, ‘राष्ट्रीयता’ शब्द का उपयोग करता है, क्योंकि पश्चिमी देशों में अतिशय राष्ट्र गर्व ने दो विश्व युद्धों को जन्म दिया था.

'हमारी राष्ट्रीयता अहंकार नहीं, आपसी संबंधों से जन्मी'

भागवत ने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता लोगों के बीच मौजूद गहरे सांस्कृतिक संबंधों और प्रकृति के साथ सामंजस्य से बनी है. उन्होंने कहा कि हम सब भाई-बहन हैं, क्योंकि हम एक ही मातृभूमि की संतान हैं. धर्म, भाषा और खान-पान की विविधता के बावजूद हम एकजुट रहते हैं.

ज्ञान, विवेक और मानवीयता की आवश्यकता

भागवत ने कहा कि केवल जानकारी होना काफी नहीं, बल्कि विवेक और व्यावहारिक समझ आवश्यक है. उन्होंने कहा कि सच्ची संतुष्टि दूसरों की मदद करने से मिलती है, जो जीवनभर याद रहती है.

AI पर चिंता नहीं, नियंत्रण हमारे हाथ में होना चाहिए

युवा लेखकों से बात करते हुए भागवत ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसका उपयोग मानवता के हित में होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि तकनीक पर नियंत्रण मनुष्य के पास ही रहना चाहिए.

वास्तविक वैश्वीकरण भारत लेकर आएगा

उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण को लेकर डरने की जरूरत नहीं, क्योंकि वास्तविक वैश्वीकरण का विचार भारत में सदियों से “वसुधैव कुटुंबकम” के रूप में मौजूद है. भविष्य में वही दुनिया को असली वैश्विक परिवार की दिशा देगा.