केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव करते हुए कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम की अनिवार्यता को कम कर दिया है. इसका उद्देश्य बिजली उत्पादन की लागत को कम करना और पर्यावरणीय अनुपालन को स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप बनाना है. इस कदम से उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिलने की उम्मीद है.
नए दिशानिर्देश: केवल चुनिंदा संयंत्रों में एफजीडी अनिवार्य
नए दिशानिर्देशों के तहत, केवल उन ताप विद्युत संयंत्रों को एफजीडी सिस्टम स्थापित करना होगा जो 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं. गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा न करने वाले शहरों में स्थित संयंत्रों का व्यक्तिगत रूप से मूल्यांकन किया जाएगा. इस निर्णय से भारत के 79% कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को एफजीडी स्थापना से छूट मिलेगी. विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे प्रति यूनिट बिजली उत्पादन लागत में 25 से 30 पैसे की कमी आएगी.
लागत और पर्यावरणीय प्रभाव
पहले अनिवार्य एफजीडी रेट्रोफिटिंग की लागत 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक, यानी 1.2 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट थी. इसके अलावा, प्रत्येक यूनिट की स्थापना में 45 दिन तक का समय लगता, जिससे पीक सीजन में ग्रिड स्थिरता प्रभावित हो सकती थी. आईआईटी दिल्ली, सीएसआईआर-एनईईआरआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (NIAS) के अध्ययनों में पाया गया कि भारत के अधिकांश हिस्सों में सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर 3 से 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जो राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से काफी कम है.
कम सल्फर वाला कोयला और प्रभावी फैलाव
भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा आमतौर पर 0.5% से कम होती है. ऊंचे चिमनी ढांचे और अनुकूल मौसमी परिस्थितियों के कारण सल्फर डाइऑक्साइड का फैलाव प्रभावी होता है. एनआईएएस के अध्ययन ने चेतावनी दी कि देशव्यापी एफजीडी स्थापना से 2025 से 2030 के बीच चूना पत्थर खनन, परिवहन और बिजली खपत के कारण 69 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन बढ़ सकता है.
उद्योग की प्रतिक्रिया
उद्योग के अधिकारियों ने इस निर्णय का स्वागत किया है. एक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा, “यह एक तर्कसंगत, वैज्ञानिक निर्णय है जो अनावश्यक लागत को रोकता है और नियमन को वहां केंद्रित करता है जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है.”
सरकार का रुख
सरकारी अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि यह पर्यावरण संरक्षण से पीछे हटना नहीं है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह एक री-कैलिब्रेशन है, जो सबूतों पर आधारित है. हमारा दृष्टिकोण अब लक्षित, कुशल और जलवायु-सचेत है.” इस संबंध में जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया जाएगा.