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'लाल आतंक' के खिलाफ लड़ाई में हिडमा के अंत के क्या हैं मायने? मुठभेड़ में मारा गया वांटेड माओवादी 

शीर्ष माओवादी कमांडर माडवी हिडमा को आंध्र प्रदेश के मारेदुमिल्ली जंगल में ग्रेहाउंड्स ने मुठभेड़ में मार गिराया. दंतेवाड़ा और झीरम घाटी जैसे बड़े हमलों का मास्टरमाइंड हिडमा वर्षों से सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ था.

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Edited By: Kanhaiya Kumar Jha
Madvi Hidma Maoist commander India Daily
Courtesy: Social Media

नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश पुलिस ने सोमवार सुबह एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए देश के सबसे खतरनाक और वांछित माओवादी कमांडर माडवी हिडमा को मुठभेड़ में मार गिराया.

हिडमा पिछले कई वर्षों से सुरक्षा एजेंसियों के लिए रहस्य बना हुआ था. उसके बारे में कोई हालिया तस्वीर, पुख्ता जानकारी या सही लोकेशन का पता नहीं होता था, जिसकी वजह से उसे पकड़ना बेहद मुश्किल था.

हिडमा के आसपास एक मजबूत सुरक्षा घेरा और भरोसेमंद सूचना तंत्र था, जो उसे हर खतरे से पहले ही आगाह कर देता था. यही कारण था कि सुरक्षा बल कई बार अभियान चलाने के बावजूद उसे पकड़ने में नाकाम रहे थे.

लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ते माओवादी-विरोधी अभियानों, आत्मसमर्पणों और संगठन की कमजोरी के कारण हिडमा और उसके करीबी साथियों की गतिविधियां सीमित हो गई थीं. इसी दौरान वह पुलिस के जाल में फंस गया और आंध्र, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना की सीमाओं के पास स्थित जंगलों में मुठभेड़ में मारा गया.

कौन था हिडमा? ऐसे बना खूंखार कमांडर

माडवी हिडमा, जिसे देवा या हिडमालू नाम से भी जाना जाता था, का जन्म 1981 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के पुवर्ती गांव में हुआ था. उसने दसवीं तक पढ़ाई की और फिर माओवादियों से जुड़ गया. बताया जाता है कि गांव में माओवादियों द्वारा करवाए जा रहे कामों को देखकर वह संगठन की ओर आकर्षित हुआ.

पूर्व माओवादी रमेश पुडियामी उर्फ बदरन्ना, जो उसके पहले प्रशिक्षक माने जाते हैं, ने बताया कि हिडमा शुरू से ही बेहद अनुशासित और उत्साही था. दो साल तक एक गुरिल्ला यूनिट में काम करने के बाद उसे एक प्लाटून का कमांड दिया गया. उसके साहस और रणनीति के कारण वह तेजी से संगठन में ऊपर उठता गया.

बाद में हिडमा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन का कमांडर बना और CPI (माओवादी) की केंद्रीय समिति में शामिल होने वाला सबसे युवा सदस्य बन गया. वह बस्तर क्षेत्र से इस कमेटी में शामिल होने वाला अकेला आदिवासी था.

खूनी हमलों का मास्टरमाइंड

हिडमा पर कई बड़े और भयावह हमलों का आरोप था. कहा जाता है कि 2010 के दंतेवाड़ा हमले (76 जवान शहीद), 2013 के झीरम घाटी नरसंहार (27 लोगों की मौत) और 2021 के सुकमा-बीजापुर हमले (22 जवान शहीद) में उसकी प्रमुख भूमिका थी.

उसकी बटालियन को माओवादियों की सबसे घातक यूनिट माना जाता था. जंगलों में युद्ध कौशल और स्थानीय जानकारियों की वजह से उसे पकड़ना लगभग नामुमकिन हो गया था. उस पर 50 लाख रुपये का इनाम भी घोषित था.

मुठभेड़ में अंत, संगठन को बड़ा झटका

आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामाराजू जिले के मारेदुमिल्ली जंगल में ग्रेहाउंड्स कमांडो ने हिडमा और उसके पांच साथियों को ढेर किया. मुठभेड़ में उसकी पत्नी राजे भी मारी गई.

राज्य के डीजीपी हरीश कुमार गुप्ता ने इसे माओवादी-विरोधी अभियान की “ऐतिहासिक सफलता” बताया. उन्होंने कहा कि हिडमा का मारा जाना संगठन की सैन्य ताकत के लिए बड़ा नुकसान है और इससे युवाओं को भटके हुए रास्ते पर जाने से रोकने में मदद मिलेगी.

हिडमा की मौत ऐसे समय में हुई है जब संगठन पहले ही कमजोर हो चुका है. इससे उम्मीद है कि प्रभावित इलाकों में हिंसा और लाल आतंक और तेजी से कम हो सकेगा.