Kerala alert after Liberian ship sinks: भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल रविवार को डूबे लाइबेरियाई कंटेनर जहाज से तेल रिसाव को रोकने के लिए दिन-रात प्रयास कर रहे हैं. समुद्री जीवविज्ञान विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि तेल और प्रदूषण को समुद्र में ही रोकना बहुत जरुरी है, क्योंकि मानसून के तट पर सफाई की प्रक्रिया अत्यंत जटिल हो सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि अपतटीय नियंत्रण उपाय, जैसे बूम, स्प्रे और बायोरेमेडिएशन, रिसाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है.
केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) की वैज्ञानिक टीमें केरल के तट पर अलपुझा, एर्नाकुलम और कोल्लम में जल और तलछट के नमूने एकत्र कर रही हैं. इन नमूनों से तेल और ग्रीस की मात्रा का विश्लेषण किया जाएगा, ताकि रिसाव के रासायनिक प्रभावों का पता लगाया जा सके. सीएमएफआरआई के निदेशक ग्रिंसन जॉर्ज ने कहा, "अगर तेल रिसाव का दायरा बड़ा हुआ, तो रोकथाम के उपाय सीमित हो सकते हैं. इसका अल्पकालिक प्रभाव छोटे पैमाने के मछुआरों की आजीविका पर पड़ सकता है, साथ ही समुद्री प्रजातियों और पेलाजिक मछली प्रजनन पर भी खतरा मंडरा सकता है.'
समुद्री जीवन पर गंभीर खतरा
प्रख्यात समुद्री जीवविज्ञानी और सृष्टि कंजर्वेशन फाउंडेशन के निदेशक दीपक आप्टे ने बताया, 'अगर तेल का रिसाव ज़्यादा हुआ तो रेतीले समुद्र तटों और बैकवाटर पर रहने वाले प्रवासी पक्षियों, समुद्री कछुओं पर इसका असर चिंता का विषय होगा. जहां तक घटना स्थल का सवाल है, अगर वहां तेल की परत होगी तो मछलियां ,समुद्री पक्षी प्रभावित होंगे. एक बार जब तेल उनके अंगों में पहुंच जाता है, तो बहुत कम किया जा सकता है.' आप्टे ने 2010 में एमएससी चित्रा तेल रिसाव की जांच का नेतृत्व किया था, जिसमें 800 टन से अधिक तेल समुद्र में लीक हुआ था, जिससे मैंग्रोव और समुद्री जीवन को भारी नुकसान हुआ था.
पारिस्थितिक प्रभावों का आकलन
CMFRI की टीमें तट पर फील्ड सर्वे और नमूना संग्रह के लिए सक्रिय हैं. भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) की टीमें भी जल्द ही इस प्रयास में शामिल होंगी. एक टीम सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अभी तक तट पर तेल रिसाव के कोई संकेत नहीं मिले हैं, और शांत समुद्र में शोध पोत के माध्यम से नमूने एकत्र किए जाएंगे.
प्रजनन काल में बढ़ती चिंता
भारतीय मत्स्य सर्वेक्षण के महानिदेशक श्रीनाथ केआर ने बताया कि तेल रिसाव बेंथिक और पेलाजिक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकता है. "इस समय अधिकांश प्रजातियां प्रजनन काल में हैं. किशोर और लार्वा, जो पेलाजिक हैं, प्लवक के साथ प्रभावित हो सकते हैं. अगर तेल दक्षिणी केरल की ओर फैलता है, तो कोरल भी खतरे में पड़ सकते हैं.
जहाज के कंटेनरों का खतरा
हालांकि तट पर अभी तक तेल रिसाव नहीं देखा गया है, लेकिन डूबे जहाज के कंटेनर कोल्लम और अलपुझा में तट पर पहुंचने लगे हैं. जहाज में 640 कंटेनर थे, जिनमें से 13 में "खतरनाक माल" और 12 में कैल्शियम कार्बाइड था. तटरक्षक बल के मुताबिक, जहाज में 84.44 मीट्रिक टन डीजल और 367 मीट्रिक टन फर्नेस ऑयल भी मौजूद था.