गुवाहाटीः नार्थ ईस्ट के राज्य असम में हिमंता सरकार जल्द ही स्वदेशी मुसलमानों की पहचान के लिए अभियान शुरू करने वाली है. असम सरकार की कैबिनेट ने पहले ही राज्य में स्वदेशी मुस्लिम आबादी के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण (Socio Economic Survey) को आगे बढ़ा दिया है. वर्तमान में सरकार उन क्षेत्रों को चिह्नित कर रही है, जहां स्वदेशी मुस्लिम आबादी रहती है. हालांकि हिमंता सरकार के इस कदम पर राज्य कांग्रेस ने तंज कसा है. कांग्रेस का कहना है कि गणना करानी है तो सभी जातियों की कराएं.
बताया गया है कि असम के कामरूप ग्रामीण जिले में स्थित दूरदराज के गांवों में यह पता लगाया जाएगा कि पूर्वी बंगाल मूल के मुसलमानों की तुलना में असमिया मुसलमानों की पहचान कितनी अलग है. उधर, स्वदेशी मुस्लिम समुदायों ने आरोप लगाया है कि बेरोकटोक आप्रवासन के कारण वे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं, क्योंकि पूर्वी बंगाल मूल के मुसलमान सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से उन पर हावी हो गए हैं.
गोरिया विकास परिषद के अध्यक्ष हाफिज अहमद ने अप्रवासियों को बसाने के लिए कांग्रेस शासन को जिम्मेदार ठहराया है. साथ ही स्वदेशी मुसलमानों की पहचान के लिए असम के मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया है. इस बीच एआईयूडीएफ और कांग्रेस जैसे नेताओं ने असम सरकार पर सवाल उठाने के साथ इस मामले पर राजनीति कदम बताया है.
एआईयूडीएफ प्रवक्ता जेहरुल इस्लाम का कहना है कि सरकार मुस्लिम समुदाय का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है. उधर असम कांग्रेस के प्रवक्ता अब्दुल अजीज का कहना है कि चुनिंदा 5 समुदायों के लिए जाति जनगणना करने से बेहतर है कि राज्य में सभी के लिए जाति जनगणना की जाए.
बता दें कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार, असम की 34 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुस्लिमों की थी. जबकि राज्य की कुल 31 मिलियन की आबादी में 10 मिलियन से ज्यादा मुस्लिम हैं. गोरिया, मोरिया, जोलाह (जिसमें चाय बागानों में रहने वाले लोग शामिल हैं), और देसी व सैयद (जो केवल असमिया भाषी हैं) समुदायों को पिछले साल जुलाई में राज्य सरकार की ओर से मूल असमिया मुसलमानों के रूप में वर्गीकृत किया गया था.