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India Daily

भारत में 'हम दो हमारे दो' नारा हुआ पुराना, एक बच्चे पर फोकस, इन देशों में एक बच्चा पैदा करने से भी बच रहे लोग?

भारत में जन्मदर घटकर 'हम दो, हमारे दो' के स्तर से भी नीचे है. विश्व बैंक के अनुसार, यह रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से कम है. दुनिया के कई बड़े देशों में जन्मदर इससे भी नीचे है, जैसे दक्षिण कोरिया, जापान और चीन. आर्थिक बदलाव, शहरी जीवन की महंगाई, महिलाओं की स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक सोच इसके प्रमुख कारण हैं. हालांकि, इससे जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सकता है, लेकिन श्रम शक्ति और आर्थिक विकास पर असर पड़ सकता है.

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Edited By: Km Jaya
Birth rate
Courtesy: Social Media

India Population: भारत में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार अब 'हम दो, हमारे दो' की नीति से भी नीचे पहुंच गई है. विश्व बैंक के 2023 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में जन्मदर घटकर 1.98 रह गई है, जबकि किसी भी आबादी को स्थिर रखने के लिए 2.1 का रिप्लेसमेंट लेवल जरूरी माना जाता है. यह बदलाव इस बात का संकेत है कि भारत में अधिकतर परिवार अब दो से कम बच्चों को प्राथमिकता दे रहे हैं. कई परिवार एक ही संतान पर रुक रहे हैं या फिर संतान न पैदा करने का फैसला कर रहे हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक बीते कुछ दशकों पहले तक तेजी से बढ़ती जनसंख्या भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय थी. आज भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, लेकिन जन्मदर में यह गिरावट आने वाले दशकों में देश की जनसंख्या संरचना और आर्थिक समीकरण पर असर डाल सकती है.

इन देशों में स्थिति गंभीर

दुनिया के कई बड़े देशों में स्थिति भारत से भी अधिक गंभीर है. दक्षिण कोरिया में जन्मदर मात्र 0.72 है, यानी एक औसत दंपती एक बच्चा भी पैदा नहीं कर रहा. चीन में यह दर 1 है, जापान में 1.2, सिंगापुर में 0.97, अमेरिका में 1.62 और फ्रांस में 1.66 है. इन सभी देशों में जन्मदर रिप्लेसमेंट लेवल से काफी नीचे है. पूरी दुनिया का औसत 2.2 है, जो रिप्लेसमेंट लेवल से बस थोड़ा ही अधिक है. अफ्रीकी देशों और पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे मुल्कों में ही यह दर अभी भी अधिक बनी हुई है.

जन्मदर में गिरावट के कारण

जन्मदर में गिरावट के कारणों में औद्योगिकीकरण, शहरी जीवन की महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्च, तथा बदलती सामाजिक सोच प्रमुख हैं. पहले कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में अधिक श्रम शक्ति की जरूरत होती थी, लेकिन अब तकनीकी प्रगति और मशीनों के इस्तेमाल से यह आवश्यकता कम हो गई है. वहीं, शहरी क्षेत्रों में लोग अपनी जीवनशैली से समझौता नहीं करना चाहते, जिससे वे बच्चों की संख्या सीमित रखते हैं.

लगातार घट रही आबादी

जापान जैसे देशों में लगातार 16 वर्षों से आबादी घट रही है. यहां मृत्यु दर, जन्मदर से अधिक हो चुकी है. श्रम शक्ति में कमी, वृद्ध आबादी का बढ़ता बोझ और आर्थिक चुनौतियां इन देशों के सामने बड़ी समस्या बन रही हैं. इसी कारण से कई देश बच्चे पैदा करने पर प्रोत्साहन राशि, टैक्स छूट और अन्य लाभ दे रहे हैं, लेकिन लोगों के रुझान में बड़ा बदलाव नहीं हो रहा.

जन्मदर में कमी का अहम कारण 

विशेषज्ञ मानते हैं कि महिलाओं की शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि भी जन्मदर में कमी का अहम कारण है. महिलाएं अब परिवार नियोजन के फैसलों में बराबर की भागीदार हैं और करियर, जीवनशैली व स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रही हैं.

इसके सकारात्मक पहलू 

जन्मदर घटने के कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं, जैसे कम आबादी होने से बच्चों की जीवन गुणवत्ता में सुधार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं. हालांकि, लंबे समय में यह रुझान श्रम शक्ति की कमी और आर्थिक विकास की गति पर चुनौती बन सकता है.