बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा है. 6 जुलाई 2025 को अपना 90वां जन्मदिन मनाने जा रहे दलाई लामा ने अपनी हालिया किताब 'Voice for the Voiceless' में संकेत दिया है कि वह इस अवसर पर अपने उत्तराधिकारी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर सकते हैं. यह मुद्दा न केवल तिब्बती समुदाय के लिए, बल्कि भारत, चीन और अमेरिका जैसे देशों के लिए भी सामरिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अहम है.
तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार, दलाई लामा का चयन पुनर्जनन की मान्यता पर आधारित है. जब किसी वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु का निधन होता है, तो उनकी आत्मा किसी नवजात शिशु में पुनर्जन्म लेती है. वर्तमान दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तरी तिब्बत (वर्तमान में चीन के किंघाई प्रांत) में एक किसान परिवार में हुआ था. उनका जन्म नाम ल्हामो थोंधुप था.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बत सरकार द्वारा गठित एक खोज दल ने कई संकेतों के आधार पर उनकी पहचान की थी. इस दल ने देखा कि जब दो वर्षीय ल्हामो को 13वें दलाई लामा की व्यक्तिगत वस्तुएं दिखाई गईं, तो उन्होंने उत्साहपूर्वक कहा, "ये मेरी हैं, ये मेरी हैं." इसके बाद, 1940 में उन्हें ल्हासा के पोटाला पैलेस ले जाया गया, जहां उन्हें औपचारिक रूप से तिब्बती जनता का आध्यात्मिक गुरु घोषित किया गया.
तिब्बती परंपरा बनाम चीन का दखल
दलाई लामा ने अपनी किताब 'Voice for the Voiceless' (मार्च 2025) में स्पष्ट किया है कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर जन्म लेगा, संभवतः भारत या किसी अन्य "स्वतंत्र विश्व" में. यह बयान चीन के लिए एक सीधा चुनौती है, जो दावा करता है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन करने का अधिकार केवल उसके पास है. चीन का यह दावा किंग राजवंश (1793) से चली आ रही परंपरा पर आधारित है, जिसमें संभावित पुनर्जनन के नाम एक स्वर्ण कलश से निकाले जाते हैं.
चीन ने दलाई लामा को अलगाववादी करार देते हुए कहा है कि वह तिब्बती जनता का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं रखते. दूसरी ओर, दलाई लामा ने अपने अनुयायियों से अपील की है कि वे चीन द्वारा चुने गए किसी भी उत्तराधिकारी को स्वीकार न करें. निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष डोल्मा त्सेरिंग ने कहा कि वैश्विक समुदाय को दलाई लामा की आवाज सुननी चाहिए, क्योंकि चीन इस आध्यात्मिक प्रक्रिया को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है.
भारत और अमेरिका की भूमिका
दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन न केवल धार्मिक, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. भारत, जहां दलाई लामा 1959 से निर्वासित जीवन जी रहे हैं, तिब्बती समुदाय का एक प्रमुख केंद्र है. धर्मशाला में स्थित निर्वासित तिब्बती सरकार (CTA) और 100,000 से अधिक तिब्बती शरणार्थियों की मौजूदगी भारत को इस मामले में एक महत्वपूर्ण पक्ष बनाती है. अमेरिका ने भी इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाया है. 2020 के तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम के तहत, अमेरिका ने कहा है कि दलाई लामा के पुनर्जनन में चीनी हस्तक्षेप को धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन माना जाएगा और इसके लिए चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं.