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Haldwani Violence: गाड़ी में आग लगाने से रोका तो सीने में मारी गोली...!, हल्द्वानी हिंसा में मृतक के परिजन ने सुनाई खौफनाक कहानी

Haldwani Banbhulpura violence: नैनीताल जिले के हल्द्वानी को शांत और खुशनुमा शहर माना जाता है. कारण ये कि ये पर्यटक स्थल है. पर्यटकों से यहां के लोगों का परिवार पलता है, लेकिन अचानक इस शहर को किसी की नजर लग गई और तीन दिन पहले हिंसा भड़क गई. हिंसा में 5 लोगों की मौत भी हो गई. अब मृतक के परिजन ने हिंसा की खौफनाक कहानी बयां की है.

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Edited By: Om Pratap
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Haldwani Banbhulpura violence: हल्द्वानी के बनभूलपुरा में 8 फरवरी को हुई हिंसा के बाद पूरे शहर में तनाव का माहौल है. सड़कों पर सन्नाटा पसरा है. ऐहतियातन इंटरनेट सेवा, स्कूल, कॉलेज, बाजार, दुकान बंद कर दिए गए हैं. हिंसा में अब तक 5 लोगों की मौत हुई है, जबकि सैंकड़ों लोग घायल हैं. हिंसा में मारे गए एक शख्स के परिजन ने उस शाम की खौफनाक कहानी बयां की है. हिंसा में जो पांच लोग मारे गए, उनमें हल्द्वानी के रहने वाला 30 साल का फहीम कुरैशी, 45 साल का जाहिद हुसैन, 16 साल का मोहम्मद अनस (पिता जाहिद हुसैन), 22 साल का मोहम्मद शाबान और 24 साल का बिहार का रहने वाला प्रकाश कुमार सिंह शामिल है.

हिंसा में मारे गए 45 साल के जाहिद के बेटे मोहम्मद अमान ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए 8 फरवरी की शाम की खौफनाक कहानी बयां की है. मोहम्मद अमान ने बताया कि हिंसा भड़कने से पहले वो अपने पिता  अराजकता फैलने से पहले वह और उनके पिता जाहिद हुसैन के साथ काम से लौट रहा था. इस दौरान उसके पिता ने किसी काम से खुद के रूकने की बात कही और अमान को घर जाने के लिए कहा. अमान जब घर लौटा तो उसे हिंसा की खबर मिली.

बेटों को ढूंढने निकले, लेकिन बने गोली का शिकार

अमान ने बताया कि सबसे पहले वह अपने छोटे भाई 16 साल के मोहम्मद अनस की तलाश करने लगा, क्योंकि उस दौरान वो घर में नहीं था. इसी दौरान मुझे पता चला कि मेरा एक दोस्त भी हिंसा के बीच बाजार में फंस गया है. मैं अपने भाई और दोस्त को ढूंढने निकल गया. इस बीच मेरे पिता काम निपटाकर घर लौटे, तब उन्हें पता चला कि अनस घर पर नहीं है और मैं उसे ढूंढने निकला हूं. तभी मेरे पिता जाहिद हुसैन मुझे और मेरे छोटे भाई की तलाश में निकल गए. 

अमान ने बताया कि मेरे पिता हिंसा के बीच एक डेयर के पास खड़े हो गए. इसी दौरान उनके सीने में गोली लगी. एक पड़ोसी की ओर से मुझे इसकी सूचना मिली तो मैं घटनास्थल पर गया और पिता को लेकर स्थानीय क्लीनिक में पहुंचे. यहां पता चला कि मेरा छोटा भाई अनस पहले से भर्ती है. अनस को कमर से नीचे गोली लगी थी. मुझे देखने के बाद क्लीनिक में मौजूद डॉक्टरों ने मुझे दोनों को अस्पताल ले जाने के लिए कहा. लेकिन हिंसा के कारण मैं किसी गाड़ी या एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं कर पाया. कुछ देर बाद ही मेरे पिता और भाई की क्लीनिक में ही मौत हो गई.

परिवार से सिर्फ 5 लोगों को मिली दफनाने की अनुमति

अमान ने बताया कि पिता और भाई की मौत के बाद किसी तरह मैं दोनों की लाश को घर लेकर आया. पुलिस को इसकी जानकारी दी. फिर अगले दिन यानी शुक्रवार को दोनों का पोस्टमार्टम किया गया और फिर प्रशासन की ओर से सिर्फ 5 लोगों की मौजूदगी में जानाजे की अनुमति दी गई. 

हिंसा में मारे गए एक अन्य शख्स 30 साल के फहीम कुरैशी के चचेरे भाई जावेद ने दावा किया कि मेरे पड़ोसियों ने फहीम की गोली मारकर हत्या कर दी. जावेद ने बताया कि हिंसा वाले दिन फहीम घर पर ही था. शाम करीब 7.30 बजे फहीम ने देखा कि कोई उसकी गाड़ी में आग लगा रहा है. इसके बाद वो बाहर निकला और गाड़ी में आग लगाने का विरोध किया, तो उसके सीने में गोली मार दी गई. गोली चलने की आवाज के बाद परिजन बाहर निकले, तो हमलावर वहां से भाग निकले. फिर फहीम को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. जावेद ने बताया कि फहीम के परिवार में उसकी मां, पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं.

फेरी लगाने वाले शख्स ने भी किया बेटे की मौत का दावा

प्रशासन की ओर से पांच लोगों की मौत की पुष्टि के अलावा हिंसा में एक और मौत का दावा किया जा रहा है. बनभूलपुरा इलाके में फेरी लगाने वाले गौहर ने दावा किया कि उनके बेटे आरिस (18) की भी हिंसा के दौरान मौत हो गई, लेकिन उसका नाम प्रशासन की सूची में नहीं था क्योंकि परिवार उसे बरेली के एक अस्पताल में ले गया था.

गौहर ने बताया कि मेरा बेटा हमारे घर से लगभग एक किलोमीटर दूर एक कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. गुरुवार को जब हिंसा शुरू हुई तो मैंने उन्हें शाम करीब 5.45 बजे फोन किया और वापस आने को कहा. लेकिन वह वापस नहीं लौटा. मैंने उसे 6.30 बजे दोबारा फोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया. मैंने उसे ढूंढने जाने का फैसला किया. ढूंढते समय, किसी ने मुझे बताया कि मेरा बेटा एक चौराहे पर पड़ा हुआ है. दो अन्य लोगों की मदद से, मैं उसे घर ले आया.

गौहर ने बताया कि हिंसा को देखते हुए हमने उसे बरेली ले जाने का फैसला किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई. हमने उसे बदायूं में दफनाया. वह मेरा बड़ा बेटा था. गौहर के दावे को लेकर जिला अधिकारियों ने कहा कि वे मौतों के आसपास की परिस्थितियों की जांच कर रहे हैं.

 

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