menu-icon
India Daily

'मेरे अपने ही समुदाय के लोगों ने मेरी अलोचना की लेकिन...,' सुप्रीम कोर्ट के SC-ST में क्रीमी लेयर फैसले पर बोले मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई

सीजेआई बीआर गवई ने क्रीमी लेयर पर अपने फैसले को लेकर आलोचना पर कहा कि उनके निर्णय जनता की इच्छाओं से नहीं बल्कि कानून और अंतरात्मा से प्रेरित होते हैं. गवई ने कहा कि जज भी इंसान होते हैं और गलतियां कर सकते हैं. विदर्भ जंगल मामले पर उन्होंने लोगों को राहत दिए जाने को सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया.

auth-image
Edited By: Km Jaya
CJI B R Gavai
Courtesy: Social Media

भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने शनिवार को गोवा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन में भाषण देते हुए अपने कई महत्वपूर्ण और विवादास्पद फैसलों पर खुलकर बात की. उन्होंने क्रीमी लेयर और अनुसूचित जाति में उप-वर्गीकरण से जुड़े फैसले को लेकर कहा कि इस पर उन्हें अपने ही समुदाय की आलोचना झेलनी पड़ी, लेकिन वे हमेशा कानून और अंतरात्मा के अनुसार निर्णय लेते हैं, न कि जनता की इच्छा या दबाव के आधार पर.

मुख्य न्यायाधीश गवई ने सवाल उठाया कि आरक्षित वर्ग से पहली पीढ़ी आईएएस बनती है, फिर दूसरी और तीसरी पीढ़ी भी उसी कोटे का लाभ उठाती है तो क्या मुंबई या दिल्ली के श्रेष्ठ स्कूलों में पढ़ने वाला बच्चा, जो हर सुविधा से लैस है, उस ग्रामीण मजदूर या खेतिहर के बच्चे के बराबर हो सकता है, जो सीमित संसाधनों वाले स्कूल में पढ़ाई करता है'.  उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि समानता का मतलब सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना नहीं है, बल्कि असमानता को दूर करने के लिए असमान व्यवहार करना ही संविधान की मूल भावना है.

सेपरेशन ऑफ पावर

सीजेआई गवई ने बुलडोजर एक्शन से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि संविधान कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के बीच 'सेपरेशन ऑफ पावर' को मान्यता देता है. कार्यपालिका को जज की भूमिका निभाने देना संविधान के ढांचे को कमजोर करेगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश जारी किए ताकि बिना उचित प्रक्रिया के किसी का घर न उजाड़ा जाए. इसे उन्होंने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम बताया.

आलोचना हमेशा स्वागत योग्य 

उन्होंने यह भी कहा कि आलोचना हमेशा स्वागत योग्य है क्योंकि जज भी इंसान होते हैं और गलतियां कर सकते हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि हाई कोर्ट जज के रूप में उनके कुछ फैसले 'पेर इनक्यूरियम' यानी बिना उचित विचार के दिए गए थे. उन्होंने यह भी बताया कि उनके विचारों को सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य जजों का समर्थन मिला.

सामाजिक और आर्थिक न्याय

सीजेआई गवई ने विदर्भ के झुडपी जंगल मामले का जिक्र करते हुए कहा कि 86,000 हेक्टेयर भूमि को सुप्रीम कोर्ट ने जंगल माना था, लेकिन वहां दशकों से रह रहे लोगों और किसानों को बेदखल न करने का फैसला दिया गया. उन्होंने इसे सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया. अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के जज किसी भी तरह सुप्रीम कोर्ट से कम नहीं हैं. प्रशासनिक रूप से हाई कोर्ट स्वतंत्र हैं और उन्हें समान सम्मान मिलना चाहिए.