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India Daily
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अयोध्या मामले पर फैसले को लेकर कैसे सहमत हुए थे सभी जज? भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ ने बताई वजह

9 नवंबर 2019 को जारी किए गए फैसले ने एक विवादास्पद मुद्दे का समाधान किया, जो एक सदी से भी ज्यादा समय से बना हुआ था.

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Naresh Chaudhary
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हाइलाइट्स

  • 9 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर सुनाया था फैसला
  • सीजेआई ने पर्दे के पीछे की निर्णय लेने की प्रक्रिया का किया खुलासा

Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट की ओर से अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाए चार साल से ज्यादा का समय बीत चुका है. ये एक ऐसा फैसला था, जिसका देश के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा है. नए साल के पहले दिन यानी सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले के बारे में बात की, जिसमें वह खुद भी शामिल थे. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी एकल न्यायाधीश (सिंगल जज) को फैसला लेने के रूप में श्रेय नहीं दिया गया था.

9 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर सुनाया था फैसला

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 9 नवंबर 2019 को जारी किए गए फैसले ने एक विवादास्पद मुद्दे का समाधान किया, जो एक सदी से भी ज्यादा समय से बना हुआ था. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ((जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर और वर्तमान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़) ) ने न केवल विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का फैसला सुनाया, बल्कि यह भी निर्देश दिया कि अयोध्या शहर में मस्जिद निर्माण के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन भी आवंटित की जाए.

सीजेआई ने पर्दे के पीछे की निर्णय लेने की प्रक्रिया का किया खुलासा

न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए सीजेआई धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने पर्दे के पीछे की निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में खुलासा किया है. उन्होंने बताया कि न्यायाधीश फैसले को किसी व्यक्ति विशेष के लिए जिम्मेदार ठहराने के बजाय अदालत की एकीकृत आवाज के रूप में पेश करने पर आम सहमति पर पहुंच गए थे.

सीजेआई ने कहा कि जब पांचों न्यायाधीशों की पीठ फैसले पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठी तो हम सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि यह अदालत का फैसला होगा. इसलिए इसमें किसी भी व्यक्तिगत न्यायाधीश को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया. 

सीजेआई बोले- हम अंतिम निर्णय और फैसले के कारणों में भी साथ खड़े हैं

इस मामले में संघर्ष का एक लंबा इतिहास है. देश के इतिहास के आधार पर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और जो लोग पीठ का हिस्सा थे, उन्होंने फैसला किया कि यह पूरी तरह से कोर्ट का फैसला होगा. इसी के तहत कोर्ट एक स्वर और विचार से ही बोलेगी. ऐसा करने से यह स्पष्ट संदेश जाना था कि हम सभी न केवल अंतिम परिणाम में बल्कि फैसले में बताए गए कारणों में भी एक साथ खड़े हैं. उन्होंने कहा कि मैं अपना जवाब इसी के साथ बंद करूंगा.

बाबरी मस्जिद विध्वंस के बारे में भी कही ये बात

सुप्रीम कोर्ट की पीठ के साल 2019 के फैसले ने हिंदुओं की निर्विवाद मान्यता को स्वीकार किया कि भगवान राम का जन्म विवादित स्थल पर हुआ था, जिससे उन्हें प्रभावी रूप से जमीन के प्रतीकात्मक मालिक के रूप में मान्यता मिली. हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू कार्यकर्ताओं ने 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक ऐसा कृत्य था, जिसमें सुधार की जरूरत थी.