सीबीआई (CBI) ने एक बड़े मेडिकल शिक्षा घोटाले का पर्दाफाश किया है, जिसे भारत के सबसे गंभीर शिक्षा घोटालों में से एक बताया जा रहा है. यह घोटाला कई राज्यों में फैला हुआ है, और इसमें उच्च स्तर के सरकारी अधिकारी, डॉक्टर, धर्मगुरू और कॉलेज प्रशासन शामिल हैं. इस मामले की जांच में सामने आया है कि मेडिकल कॉलेजों ने फर्जी फैकल्टी, नकली मरीजों और भारी रिश्वत के बल पर निरीक्षण पास कराए हैं.
सीबीआई की एफआईआर में जिन लोगों के नाम सामने आए हैं, उनमें पूर्व यूजीसी चेयरमैन डीपी सिंह, स्वयंभू धर्मगुरु रविशंकर महाराज जिन्हें रावतपुरा सरकार के नाम से जाना जाता है, इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश सिंह भदौरिया और गीतांजलि यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार मयूर रावल शामिल हैं. इन सभी पर सरकारी निरीक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करने और रिश्वत देने के आरोप लगे हैं. सीबीआई का दावा है कि इन्होंने अनाधिकृत रूप से निरीक्षण की जानकारी प्राप्त कर सरकारी प्रक्रिया को गुमराह किया.
सीबीआई ने अब तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें तीन एनएमसी डॉक्टर भी शामिल हैं. इन डॉक्टरों ने रायपुर के रावतपुरा मेडिकल संस्थान को पॉजिटिव रिपोर्ट देने के लिए ₹55 लाख की रिश्वत ली थी. जांच के अनुसार रविशंकर महाराज ने निरीक्षण की तारीख और निरीक्षक के नाम जानने के लिए रावल से संपर्क किया, जिन्होंने इसके लिए ₹25–30 लाख की मांग की थी। एफआईआर के मुताबिक, डीपी सिंह से भी संपर्क किया गया था ताकि रिपोर्ट को उनके पक्ष में लाया जा सके.
जांच में यह भी सामने आया कि स्वास्थ्य मंत्रालय के आठ अधिकारियों ने गोपनीय फाइलों की जानकारी बिचौलियों और कॉलेजों को बेची. इन अधिकारियों में पूनम मीणा, धर्मवीर, पीयूष मल्यान, अनुप जायसवाल, राहुल श्रीवास्तव, दीपक, मनीषा और चंदन कुमार के नाम शामिल हैं. इन फाइलों की जानकारी के आधार पर कॉलेजों ने फर्जी फैकल्टी, नकली मरीज और बायोमेट्रिक में हेराफेरी जैसी तैयारी की ताकि निरीक्षण के समय सब कुछ सही दिखे.
सीबीआई का दावा है कि रिश्वत की राशि हवाला चैनल से भेजी गई और इसका इस्तेमाल मंदिर निर्माण जैसे कई अन्य कार्यों में भी किया गया. एनएमसी के अधिकारी जितूलाल मीणा का नाम भी सामने आया है, जिनका संपर्क वाराणसी के 'गुरुजी' इंद्र बाली मिश्रा से था. मिश्रा एक बिचौलिए वीरेंद्र कुमार के माध्यम से दक्षिण भारत के कई कॉलेजों के साथ जुड़े हुए थे. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कॉलेजों में डमी फैकल्टी की व्यवस्था के लिए हरि प्रसाद, कृष्ण किशोर और अन्कम रामबाबू सक्रिय थे. विशाखापत्तनम और वारंगल के दो बड़े कॉलेजों से घोटाले की रकम ली गई थी.