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India Daily

'तो क्या...?', राज ठाकरे ने मराठी गौरव बहस के बीच चाचा बालासाहेब के अंग्रेजी माध्यम स्कूल का उदाहरण दिया

मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में हिंदी "थोपे जाने" के खिलाफ आवाज उठाते हुए कहा कि राज्य में हर किसी को मराठी में बात करनी आनी चाहिए. उन्होंने राज्य में हिंदी "थोपे जाने" के खिलाफ आवाज उठाई और मराठी भाषा के प्रति अपना प्रेम दोहराया.

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Edited By: Mayank Tiwari
Raj Thackeray and Uddhav Thackeray
Courtesy: Social Media

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने शनिवार (5 जुलाई) को मुंबई के वर्ली में आयोजित एक विशाल रैली में हिंदी को “थोपने” के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने मराठी भाषा के प्रति अपने प्रेम को दोहराते हुए स्पष्ट किया कि मराठी गौरव का अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा से कोई विरोधाभास नहीं है. 

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के साथ 20 साल बाद हुए इस पुनर्मिलन में राज ने कहा, “लोग कहते हैं कि हमारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़े. तो क्या हुआ?  दादा भुसे मराठी स्कूलों में पढ़े और मंत्री बने. देवेंद्र फडणवीस अंग्रेजी माध्यम में पढ़े और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. तो क्या?”

मराठी प्रेम पर सवाल नहीं

राज ने अपने पिता श्रीकांत ठाकरे और चाचा बालासाहेब ठाकरे का उदाहरण देते हुए कहा कि दोनों ने अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाई की थी. उन्होंने सवाल उठाया, “क्या कोई उनके मराठी प्रेम पर सवाल उठा सकता है? कल को मैं हिब्रू भी सीख लूँ, तो क्या कोई मेरे मराठी गौरव पर सवाल उठाएगा?” 

मराठी बोलना जरूरी, हिंसा नहीं

राज ने जोर देकर कहा कि महाराष्ट्र में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मराठी बोलना आना चाहिए, लेकिन मराठी न बोलने की वजह से किसी को मारने की जरूरत नहीं है. उन्होंने हाल के उन मामलों का जिक्र किया, जिनमें मराठी न बोलने या बोलने से इनकार करने वालों को निशाना बनाया गया. राज ने कहा, “चाहे गुजराती हो या कोई और, उसे मराठी आनी चाहिए. लेकिन अगर कोई मराठी नहीं बोलता, तो उसे मारने की जरूरत नहीं. पर अगर कोई बेवजह नाटक करता है, तो उसे कान के नीचे मारना चाहिए. एक बात और कहता हूँ: अगर आप किसी को मारते हैं, तो उसका वीडियो न बनाएँ. जिसे मार पड़ी, उसे खुद बताने दें कि उसे मारा गया है. आपको सबको बताने की जरूरत नहीं.”

हिंदी भाषा नीति पर विवाद

इस साल अप्रैल में महाराष्ट्र सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की नीति लागू की थी. इस कदम का विपक्ष और भाषा समर्थक संगठनों ने कड़ा विरोध किया, जिसके बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया. यह रैली मराठी गौरव की रक्षा और इस नीति की वापसी का उत्सव थी.