Satyapal Malik Political Journey: 78 वर्षीय सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीति के एक ऐसे चेहरे रहे हैं जिन्होंने कई राजनीतिक दलों का साथ लिया, सत्ता के शिखर पर पहुंचे और अंत में एक मुखर आलोचक के रूप में सुर्खियों में आए. छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले मलिक का सफर विधानसभा से लेकर राज्यसभा और फिर राज्यपाल पद तक रहा है.
सत्यपाल मलिक ने 1968-69 में छात्र नेता के तौर पर राजनीति में प्रवेश किया. उनकी नजदीकी चौधरी चरण सिंह से बनी और 1974 में वे बागपत से विधायक बने. इसके बाद वे लोक दल में शामिल हुए और 1980 में राज्यसभा पहुंचे. हालांकि वे ज्यादा समय वहां टिक नहीं पाए. 1984 में कांग्रेस में शामिल हुए और 1986 में दोबारा राज्यसभा पहुंचे.
राजीव गांधी के समय बोफोर्स घोटाले से नाराज होकर 1987 में कांग्रेस छोड़ दी और वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल में शामिल हो गए. 1989 में अलीगढ़ से सांसद चुने गए और उन्हें संसदीय कार्य और पर्यटन राज्यमंत्री बनाया गया. यह उनके राजनीतिक करियर का शिखर था.
2004 में उन्होंने भाजपा का दामन थामा, हालांकि लोकसभा चुनाव हार गए. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भूमि अधिग्रहण बिल पर बनी समिति के अध्यक्ष बनाए गए. अक्टूबर 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और फिर अगस्त 2018 में जम्मू-कश्मीर भेजा गया.
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाया गया. इसके बाद उन्हें गोवा और फिर मेघालय का राज्यपाल बनाया गया. राज्यपाल रहते हुए वे कई बार सरकार के फैसलों पर सवाल उठाते रहे.
राज्यपाल पद से हटने के बाद मलिक खुले तौर पर केंद्र सरकार की आलोचना करने लगे. उन्होंने पुलवामा हमले पर सरकार को घेरा और कहा कि सुरक्षा में चूक के लिए कोई जवाबदेह नहीं ठहराया गया. उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए और दावा किया कि उन्हें दो घूस की पेशकश की गई थी.
मलिक ने किसान आंदोलन के समर्थन में कई बार सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि 600 से अधिक किसानों की मौत पर सरकार ने कोई संवेदना नहीं जताई. अग्निपथ योजना को लेकर भी उन्होंने कहा कि यह युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है.