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India Daily

जब ‘लग जा गले’ को रिजेक्ट किया गया, तब मनोज कुमार ने जो किया वो जानकर हैरान रह जाएंगे आप

जब मनोज कुमार ने 'लग जा गले' को अस्वीकृति से बचाने के लिए कदम बढ़ाया, तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

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Edited By: Anvi Shukla
Lag Ja Gale Raj Khosla
Courtesy: social media

Lag Ja Gale Raj Khosla: सदी की सबसे दिल छू लेने वाली रचना 'लग जा गले' को आज भले ही संगीत प्रेमियों के दिलों में अमर स्थान मिला हो, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह गीत फिल्म में शामिल ही नहीं होने वाला था? मशहूर निर्देशक राज खोसला को यह गीत पहली बार सुनने पर पसंद नहीं आया था. इस गाने को फिल्म ‘वो कौन थी’ (1964) से बाहर करने की नौबत आ गई थी, लेकिन संगीतकार मदन मोहन और अभिनेता मनोज कुमार की सूझबूझ ने इस गीत को बचा लिया.

'राज खोसला: द ऑथराइज्ड बायोग्राफी' नामक किताब में इस घटना का विस्तार से जिक्र है, जिसे अंबोरिश रॉयचौधरी ने राज खोसला की बेटियों, अनीता खोसला और उमा खोसला कपूर के सहयोग से लिखा है. मनोज कुमार को मदन मोहन ने फोन कर कहा – 'राज खोसला पागल हो गया है. एक गाना सुनाया, उसको पसंद नहीं आया. तुम आओ और कुछ करो.

राज खोसला ने खुद को चप्पल से मारने की कही बात

गीत सुनने के बाद मनोज कुमार गहराई से प्रभावित हुए. उन्होंने इसे "शानदार रचना" बताया और राज खोसला से ज़िद कर कहा कि वो इसे दोबारा सुनें. हालांकि राज ने साफ कहा – 'यह बहुत ही खराब है, मैं नहीं सुनना चाहता.' फिर भी जब उन्होंने गीत दोबारा सुना, तो वो हैरान रह गए. 'How incredibly stupid of me', कहकर उन्होंने अपनी चप्पल उठाकर खुद को मारने की बात कही.

मंगेशकर भी हुईं भावुक, मदन मोहन ने लगाया गले

इस गीत की रिकॉर्डिंग बेहद कठिन थी, जिसमें 'मुरकियां' और बारीक संगीत की गहराइयां थीं. संगीतकार संजीव कोहली (मदन मोहन के पुत्र) के अनुसार, इसे गाना लता मंगेशकर के लिए भी चुनौतीपूर्ण था. लेकिन जब उन्होंने सही तरीके से गाया, तो मदन मोहन खुद को रोक नहीं पाए. 'मदन भैय्या आये और मुझे गले लगाकर रोने लगे",** लता जी ने किताब में कहा.

छह दशक बाद भी अमर है 'लग जा गले'

यह गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है. इसे 'ए दिल है मुश्कि', 'साहेब बीवी और गैंगस्टर' और हाल ही में सलमान खान की "सिकंदर" में दोबारा उपयोग किया गया है. राज खोसला की यह फिल्म और उनका संगीत आज भी हिन्दी सिनेमा के स्वर्णिम युग का प्रतीक है.