Dhadak 2 Movie Review: 1 अगस्त 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई धड़क 2 एक ऐसी फिल्म है, जो तमिल की पॉपुलर फिल्म परियेरुम पेरुमल (2018) का हिंदी रीमेक है. सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की यह फिल्म सामाजिक असमानताओं और जातिगत भेदभाव जैसे गंभीर मुद्दों को प्रेम कहानी के जरिए उजागर करती है.
डायरेक्टर शाज़िया इकबाल ने इस कहानी को संवेदनशीलता के साथ पेश किया है, लेकिन कुछ कमियां इसे पूर्णता से थोड़ा दूर रखती हैं. आइए, इस फिल्म की कहानी, अभिनय, और प्रभाव की गहराई में उतरें.
धड़क 2 की कहानी नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक दलित परिवार से आता है और भोपाल के भीम नगर में रहता है. अपने परिवार की आर्थिक तंगी और मां के सपनों को पूरा करने के लिए वह नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ में दाखिला लेता है. यहां उसकी मुलाकात विधि (तृप्ति डिमरी) से होती है, जो एक उच्च जाति की लड़की है. दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदलती है, लेकिन जातिगत भेदभाव की दीवारें उनके रिश्ते को चुनौती देती हैं.
फिल्म की शुरुआत में नीलेश एक शादी में ढोल बजाते हुए दिखता है, जहां विधि उसका नंबर मांगती है—हालांकि, यह उसकी बहन की शादी में बैंड के लिए होता है. लेकिन जब दोनों कॉलेज में मिलते हैं, उनकी नजदीकियां बढ़ती हैं. कहानी में तनाव तब चरम पर पहुंचता है, जब नीलेश को अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ता है.
राहुल बडवेलकर और शाजिया इकबाल का लेखन धड़क 2 को एक साहसी फिल्म बनाता है, जो जातिगत भेदभाव को बिना किसी लाग-लपेट के सामने लाती है. फिल्म न तो दर्शकों को खुश करने की कोशिश करती है और न ही बॉलीवुड के पारंपरिक 'हैप्पी एंडिंग' के जाल में फंसती है.
हालांकि, डायरेक्टर शाजिया इकबाल की कोशिश दूसरे हाफ में थोड़ी कमजोर पड़ती है. अचानक आने वाले हास्य दृश्य कहानी के गंभीर स्वर को कमजोर करते हैं. फिर भी, फिल्म के सेट, कॉस्ट्यूम, और लोकेशन कहानी को प्रामाणिकता देते हैं. बस एक धड़क गाना दिल को छूता है, लेकिन बाकी संगीत प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहता है.
सिद्धांत चतुर्वेदी ने नीलेश के किरदार में जान डाल दी है. उनकी संजीदगी और भावनात्मक गहराई हर फ्रेम में दिखती है. वह एक दलित युवक के दर्द, संघर्ष, और हौसले को बखूबी उजागर करते हैं. यह किरदार उनकी फिल्मोग्राफी में मील का पत्थर साबित होगा.
तृप्ति डिमरी का किरदार विधि एक उच्च जाति की लड़की का है, जो अपने विशेषाधिकारों के बावजूद नीलेश के प्रति सहानुभूति और प्यार रखती है. उनकी केमिस्ट्री स्वाभाविक है, लेकिन कुछ अहम दृश्यों, खासकर टकराव वाले हिस्सों में, तृप्ति और गहराई ला सकती थीं. उनकी पिछली फिल्मों (काला, बुलबुल) की तुलना में यह प्रदर्शन थोड़ा कमज़ोर है.