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क्या राहुल गांधी को ले लेना चाहिए संन्यास? आंकड़ों से समझें PK सही हैं या गलत

राहुल गांधी साल 2013 से संघर्ष कर रहे हैं. भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का उदय, कांग्रेस के लिए ठीक साबित नहीं हुआ. कांग्रेस ने चुनाव-दर-चुनाव अपनी सरकारें गंवाई, राहुल गांधी की लोकप्रियता घटी और पार्टी बिखराव की ओर बढ़ गई. कांग्रेस से कई दिग्गजों ने किनारा कर लिया. इन 10 सालों में कांग्रेस ने क्या खोया-क्या पाया, आइए समझते हैं.

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Rahul Gandhi AND Priyanka Gandhi.
Courtesy: तस्वीर- सोशल मीडिया.

राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य को लेकर विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ अब ऐसे लोग भी आशंका जाहिर कर रहे हैं, जिनका काम चुनावी रणनीति तैयार करना है. देश के जाने-माने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि राहुल गांधी अगर साल 2024 में कमाल नहीं कर पाते हैं तो उन्हें राजनीति से ब्रेक लेना चाहिए.

प्रशांत किशोर यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा, 'राहुल गांधी कांग्रेस को जिताने के लिए 10 साल से असफल प्रयास कर रहे हैं. वे न तो राजनीति से अलग हए, न ही किसी और को पार्टी का चेहरा बनने दिया. मेरी नजर में यह लोकतांत्रिक नहीं है.  जब आप पिछले 10 साल से एक ही काम कर रहे हैं और उसमें कोई सफलता नहीं मिली है तब ब्रेक लेने में कोई बुराई नहीं है. आपको इसे किसी और को पांच साल के लिए करने देना चाहिए. आपकी मां ने ऐसा ही किया था.'

लेकिन क्या सच में राहुल गांधी को राजनीति से ब्रेक लेना चाहिए क्या सच में 10 साल से लगातार हार रहे हैं राहुल गांधी? आइए समझते हैं.

क्या कहते हैं लोकसभा के आंकड़े?

राहुल गांधी साल 2014 से मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. लगातार 10 साल शासन करने वाली कांग्रेस, सिमटती चली गई. जैसे ही 2014 में कांग्रेस का कार्यकाल खत्म हुआ, पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए. साल 2014 में कांग्रेस के खाते में 44 सीटें आईं, जबकि साल 2009 में यह आंकड़ा 206 था. 2017 में राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद की कमान संभाली तो पार्टी ने 2019 के चुनाव में बेहतर किया. हालांकि खुद राहुल अपना गढ़ अमेठी गंवा बैठे.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटें बढ़ी. पार्टी के 44 से बढ़कर 52 सीटें हो गईं. सीट शेयरिंग भले ही सिर्फ 9.6 प्रतिशत रही लेकिन इसका असर कई चुनावों पर पड़ा. कांग्रेस कई मोर्चे पर चुनाव बीजेपी से लड़ रही है. राहुल गांधी, अगर कांग्रेस से ब्रेक लें तो नतीजा ये होगा कि तृणमूल कांग्रेस, YSR और एनसीपी की तरह कई पार्टियां पैदा हो जाएंगी.

2014 से अब तक विधानसभा चुनावों में कैसा रहा कांग्रेस का प्रदर्शन? आइए समझते हैं.

कहीं जीते, कहीं हारे, 10 साल में ऐसे गिरी-बनी कांग्रेस सरकार

 साल 2014 में 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे. कांग्रेस की आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और सिक्किम जैसे राज्यों में सत्ता गंवा दी. अरुणाचल प्रदेश में जीत मिली लेकिन विधायकों ने बगावत कर दी और सत्ता बीजेपी को मिल गई. 2015 में दो चुनाव हुए. दिल्ली में कांग्रेस खत्म हो गई, बिहार में गठबंधन सरकार बनी. जुलाई में नीतीश कुमार ने पाला बदला और समीकरण बदल गया.

साल 2016 में 5 चुनाव हुए. असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चम बंगाल. बस पुडुचेरी ही कांग्रेस के हाथ आया. 2017 में 7 चुनाव हुए लेकिन यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश. कांग्रेस पंजाब में जीती. क्रेडिट राहुल गांधी को मिला.

साल 2018 में 9 विधानसभा चुनाव हुए. 4 में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन 2 राज्य चले गए. त्रिपुरा, नगारालैंड, मिजोरम, मेघालय, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना. कांग्रेस की सरकार तो बनी लेकिन एमपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया सरकार गिराकर चले गए.

2019 में 7 चुनाव हुए. कांग्रेस गठबंधन केवल झारखंड और महाराष्ट्र में सरकार बना पाई. महाराष्ट्र में भी दांव उल्टा पड़ा और एमवीए गठबंधन की करारी हार हुई. वैसे महाराष्ट्र में असली जीत बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की थी, कांग्रेस तुक्के से नया गठबंधन बना ले गई थी. 

2020 में दिल्ली-बिहार में करारी हार, 2021 के 5 चुनावों में 1 में जीत, वह भी तमिलनाडु में, गठबंधन के भरोसे.  2022 में कांग्रेस ने 5 चुनाव हुए. यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में कांग्रेस को नाकामी ही हाथ लगी. 2022 के विधानसभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस कामयाब हो गई.  

2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बना लिया. कांग्रेस ने तेलंगाना में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाया. इन सभी राज्यों में राहुल गांधी ने भी मेहनत की. उनके नेतृत्व में सिर्फ पार्टी को असफलता मिली है, ये तथ्यात्मक रूप से गलत है. कांग्रेस की मोदी लहर की तरह लहर भले ही नजर न आ रही हो लेकिन ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी का जनाधार ही खत्म हो गया है.

अगर राहुल गांधी हट जाएं पीछे तो गुम हो जाएगी कांग्रेस!
गांधी परिवार अगर कांग्रेस से हट जाए तो इसका बिखरना तय है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, यह पार्टी सिर्फ गांधी परिवार की वजह से एकजुट है. गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष रहे या न रहे, पार्टी की नीतियों में फैसला उसी का होता है. 

मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी के अध्यक्ष भले ही हैं लेकिन चाहे राजस्थान संकट हो या हिमाचल, पार्टी को संभाला गांधी परिवार ने ही है. सुखविंद सिंह सुक्खू की सरकार गिरने वाली थी लेकिन राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के आने के बाद सियासत बदल गई और जैसे-तैसे कांग्रेस सरकार बची.

अगर राहुल गांधी नहीं तो कौन संभालेगा कांग्रेस?

सोनिया गांधी अब सक्रिय राजनीति से विदा ले चुकी हैं. वे राज्यसभा की राह पकड़ चुकी हैं. प्रियंका गांधी की लोकप्रियता ऐसी नहीं है कि उन्हें राहुल गांधी जैसा जनसमर्थन मिल जाए. यूपी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में उन्हें जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन करारी हार हुई. शशि थरूर, डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया जयराम रमेश, सचिन पायलट, कमलनाथ, अशोक गहलोत स्थानीय नेता हो सकते हैं लेकिन राहुल गांधी की तरह राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं. ऐसे में कांग्रेस की मजबूरी है कि राहुल गांधी को छोड़ा नहीं जा सकता. उन्होंने कई राज्यों कैंपेनिंग की, जिसमें प्रचंड बहुमत से कांग्रेस ने सरकार भी बनाई. राहुल गांधी सियासत की पिच पर पूरी तरह से फ्लॉप हैं, ऐसा कहना तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है.