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Political Files: एक प्रधानमंत्री जिसकी 'चुप्पी' की देन है रामलला का भव्य मंदिर

Political Files: अयोध्या राम मंदिर विवाद भारत के सबसे जटिल विवादों में से एक है. इस विवाद में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. राव के कार्यकाल में 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ था, जिसने इस विवाद को एक नए मोड़ पर पहुंचा दिया था.

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Vineet Kumar
PV Narsimha Rao

Political Files: अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद भारत के इतिहास में एक ऐसा जटिल अध्याय है, जिसके केंद्र में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की भूमिका को लेकर आज भी बहस जारी है. 1991 में प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले राव को यह विवाद विरासत में मिला था. 

उस वक्त तक ये मुद्दा दशकों से चला आ रहा था और दोनों पक्षों की भावनाओं को संतुलित करते हुए इसका समाधान निकालना एक टेढ़ी खीर थी. राव के कार्यकाल के दौरान उठाए गए कदमों और उनके परिणामों ने उनकी भूमिका को और भी पेचीदा बना दिया.

निष्क्रियता और टालमटोल की रणनीति?

राव पर सबसे बड़ा आरोप निष्क्रियता और टालमटोल की रणनीति अपनाने का है. 1990 के दशक की शुरुआत में, मंदिर कारसेवकों का आंदोलन चरम पर था. राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर तनाव चरम पर था. राव सरकार ने 1990 में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए तो आदेश पारित किया, लेकिन ये आदेश विवाद को सुलझाने में नाकामयाब रहा.

1992 में, राव के कार्यकाल के दौरान ही वो घटना घटी जिसने देश को झकझोर कर रख दिया - बाबरी मस्जिद का विध्वंस. इस घटना के लिए राव को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कारसेवकों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए. आलोचकों का कहना है कि उनकी निष्क्रियता ने हिंदू राष्ट्रवादियों को ताकत दी और इस ज्वलंत मुद्दे को और भड़काया.

जांच आयोगों की स्थापना

हालांकि, राव सरकार ने घटना के बाद सिर्फ चुप्पी साधने भर का काम नहीं किया. उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच के लिए लिब्रहान आयोग की स्थापना की. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सुरक्षा चूक की ओर इशारा किया था. राव सरकार ने इस मामले में कई अन्य आयोगों का भी गठन किया.

यह भी सच है कि राव सरकार ने विवाद का समाधान निकालने के लिए विभिन्न प्रयास भी किए. उन्होंने दोनों पक्षों के नेताओं के साथ बातचीत की और सर्वसम्मति से समाधान खोजने का प्रयास किया. हालांकि, ये प्रयास सफल नहीं हो सके.

इतिहास का फैसला और राव की विरासत

2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अयोध्या विवाद को विराम दिया और राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ किया. इस फैसले के बाद राव की भूमिका को लेकर फिर से बहस छिड़ गई. कुछ का मानना है कि राव के कार्यकाल में कड़े फैसले लिए जाते तो शायद हिंसा को रोका जा सकता था. वहीं, कुछ अन्य का कहना है कि उन्होंने एक संवेदनशील मुद्दे को संभालने का यथासंभव प्रयास किया.

अयोध्या राम मंदिर मामले में नरसिम्हा राव की भूमिका बहुआयामी है. कठिन फैसले लेने और संवेदनशील स्थिति को संभालने की उनकी क्षमता पर सवाल उठाए जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ उनके प्रयासों को भी नकारा नहीं जा सकता. इतिहास उन्हें इस जटिल विवाद से जुड़े एक अहम किरदार के रूप में याद रखेगा.