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Political Files: एक ऐसा प्रधानमंत्री जिस पर लगे अंग्रेजों की वफादारी के आरोप, क्या है पूरी कहानी

Political Files: भारतीय राजनीति में एक विवादास्पद विषय है - क्या अटल बिहारी वाजपेयी ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ गवाही दी थी?

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Vineet Kumar
Atal Vihari Bajpayee

Political Files: भारतीय राजनीति में एक ऐसा विवाद अटल बिहारी वाजपेयी का पीछा करता रहा है जिसने उनके राष्ट्रवाद को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया. ये विवाद है 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ उनकी कथित गवाही को लेकर. 

कांग्रेस ने समय-समय पर पूर्व पीएम पर खुद को बचाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ गवाही देने का आरोप लगाया है लेकिन मामले में असली मोड़ तब आया जब उनके खिलाफ चुनाव लड़ चुके राम जेठमलानी ने इस आरोप को उठाया. जेठमलानी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बात करते हुए इस मुद्दे को उठाया था.

पूर्व पीएम पर क्या लगे थे आरोप

आरोप है कि उत्तर प्रदेश के आगरा के पास वाजपेयी ने अपने होम टाउन बटेश्वर में एक मजिस्ट्रेट के सामने 1 सितंबर 1942 को गवाही दी थी. इस गवाही के परिणामस्वरूप कम से कम एक स्वतंत्रता सेनानी, लीलाधर वाजपेयी को पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी. 

आरोप है कि 27 अगस्त 1942 को कोई डेढ़ दो सौ लोग जंगल विभाग की एक बिल्डिंग पर तिरंगा झंडा फहरा रहे थे और इस नजारे को पूर्व पीएम अपने भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी के साथ दूर से देख रहे थे. पुलिस की कार्रवाई में वहां मौजूद बहुत सारे लोगों को गिरफ्तार भी किया गया जिसमें दोनों वाजपेयी बंधु भी शामिल थे.

गवाही के बदले भाई को मिला ताम्रपत्र

हालांकि आरोप हैं कि पूर्व पीएम के पिता ने दोनों भाइयों को यह कहकर छुड़वा लिया था कि वो स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ गवाही देने को तैयार हैं.

कुछ रिपोर्ट के अनुसार अदालती कागजों में इस गवाही के चलते लीलाधर वाजपेयी समेत 4 स्वतंत्रता सेनानियों को जेल भी जाना पड़ा. राम जेठमलानी ने तो गवाही के बदले भाई ताम्रपत्र दिलाने का भी आरोप लगाया. कांग्रेस 1974 से अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर समय-समय पर इस तरह के आरोप लगाती रही है.

वाजपेयी के समर्थकों का है क्या पक्ष

हालांकि वाजपेयी के समर्थक इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं. उनका कहना है कि उस वक्त वाजपेयी नाबालिग थे (उनकी जन्म तिथि 25 दिसंबर 1924 है) और किसी भी कानूनी कार्यवाही में गवाही देने के लिए अयोग्य थे. साथ ही, ये भी रेखांकित किया जाता है कि वाजपेयी स्वतंत्रता संग्राम के एक सक्रिय समर्थक थे. बाद के जीवन में भारत के लिए किए गए उनके कार्यों के लिए उन्हें सम्मान प्राप्त हुआ.

इस विवाद के कई पहलू हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए:

  • उपलब्ध दस्तावेज: क्या कोई लिखित प्रमाण है जो वाजपेयी की गवाही की पुष्टि करता है?
  • साक्षी की उम्र: क्या वाकई में वाजपेयी उस वक्त नाबालिग थे?
  • गवाही का प्रभाव: क्या वाजपेयी की गवाही का सीधा संबंध लिलाधर बाजपेयी को दी गई सजा से था?

सच्चाई का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि अभी तक कोई निर्णायक सबूत सामने नहीं आया है. इस मामले की फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग की गई है ताकि इतिहासकार और शोधकर्ता सच्चाई का पता लगा सकें. हालांकि, यह विवाद केवल यह उजागर नहीं करता कि इतिहास जटिल है, बल्कि यह भी दिखाता है कि व्यक्ति भी जटिल होते हैं.

वाजपेयी एक सम्मानित नेता थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राष्ट्रीय सहमति कायम करने के लिए जाने जाते थे. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्होंने अपने जीवन में गलतियां नहीं कीं.