menu-icon
India Daily
share--v1

Lok Sabha elections 2024: नक्सलवाद, पिछड़ेपन का दर्द है, फिर भी बिहार की इस सीट पर वोटर्स दबाते हैं NOTA

Lok Sabha elections 2024: बिहार की एक ऐसी लोकसभा सीट है, जहां नक्सलवाद है, पिछड़ापन है. फिर भी यहां के लोगों को राजनेताओं से ज्यादा नोटा पर भरोसा है. चुनाव में यहां के बड़े से बड़े प्रत्याशी को नोटा टक्कर दे देता है. आइए, बिहार की इस रोचक सीट के बारे में जानते हैं.

auth-image
India Daily Live
Lok Sabha elections 2024 Aurangabad seat voters use NOTA Button

Lok Sabha elections 2024: लोकसभा चुनाव के दौरान देश की अलग-अलग सीटों का रोचक इतिहास सामने आता रहता है. इसी कड़ी में बिहार की एक लोकसभा सीट का इतिहास सामने आया है. ये ऐसी सीट है, जहां के लोग पिछड़ेपन और नक्सलवाद के शिकार हैं, फिर भी वे किसी राजनेता पर यकीन न कर नोटा का बटन दबाते हैं. वोटर्स इस बारे में कुछ ज्यादा बताते भी नहीं है और न ही राजनेताओं को पसंद न करने की वजह बताते हैं.

नोटा का प्रभाव इस लोकसभा सीट पर ऐसा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नोटा का वोट चौथे नंबर पर था. नोटा को कुल 22 हजार 632 वोट मिले थे, जो औरंगाबाद लोकसभा सीट पर वोटर्स की संख्या का करीब ढ़ाई प्रतिशत था. इससे पहले यानी 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 17 हजार से अधिक लोगों ने नोटा का बटन दबाया था, जिसके बाद नोटा पांचवें नंबर था. यानी पांच साल के अंतराल में नोटा बटन दबाने वालों की संख्या में इजाफा हुआ था. 

2019 में यहां से भाजपा के प्रत्याशी सुशील सिंह को जीत हासिल हुई थी. उन्हें 4 लाख 31 हजार से अधिक वोट मिले थे, जबकि हम के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद दूसरे नंबर पर थे. उन्हें 3 लाख 58 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर बसपा प्रत्याशी नरेश यादव थे, जिन्हें 34 हजार से ज्यादा जबकि चौथे नंबर पर नोटा था, जिसे 22 हजार 632 वोट मिले थे. 

मुद्दों की बात तो करते हैं लेकिन राजनेताओं की पसंद पर चुप्पी साध लेते हैं

यहां के लोग अपने पसंद के मुद्दे पर चर्चा तो जरूर करते हैं, लेकिन जब बात मनपसंद की पार्टी या राजनेता की बात आती है, तो वे चुप्पी साध लेते हैं. इसके अलावा, पिछले 5 साल के राज्य और केंद्र सरकार के काम से भी संतुष्ट नजर आते हैं. कुछ लोगों की संख्या ऐसी भी है, जो सीधे तौर पर किसी तरह के विकास कार्यों से इनकार करते हैं. 

कुछ वोटर्स का मानना होता है कि स्थिति लगातार पिछले कुछ सालों से खराब होती आ रही है. अब लोकतंत्र का पर्व है, तो वोट तो देना ही है. देखते हैं कि मतदान केंद्र पर किसे वोट देंगे. ऐसा नहीं है कि औरंगाबाद के किसी इलाके में विकास नहीं पहुंचा है. कुछ इलाकों में विकासकार्य हुए हैं, लेकिन अधिकांश लोग इससे इनकार करते हैं.