देश के महंगे प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का प्रावधान शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 में किया गया है. इस कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी सीटें EWS कोटे के लिए आरक्षित होती हैं, जिससे ये बच्चे बिना फीस दिए यहां पढ़ सकते हैं. इसी के तहत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर मुरादाबाद की एक बच्ची को जिले के सबसे महंगे स्कूल में दाखिला दिया गया है, जहां उसे कोई फीस नहीं देनी पड़ेगी.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 के अनुसार, देश के प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित होती हैं. इसका मतलब यह है कि ये बच्चे बिना फीस के इन स्कूलों में पढ़ सकते हैं. यह सुविधा खासतौर पर उन परिवारों के लिए है जिनकी आमदनी कम है.
ऑल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट अशोक अग्रवाल के अनुसार, RTE के नियमों के मुताबिक, EWS कोटे से बच्चों को पहली कक्षा में दाखिला दिया जाता है और वे 8वीं कक्षा तक मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं. इस कानून का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करना है. अगर किसी अभिभावक के पास EWS कोटे का प्रमाणपत्र है, तो वह अपने बच्चे का दाखिला प्राइवेट स्कूल में मुफ्त करवा सकता है. अशोक अग्रवाल बताते हैं कि अगर कोई अभिभावक RTE के तहत निर्धारित शर्तों पर खरा उतरता है, तो प्राइवेट स्कूल उसे दाखिला देने से इंकार नहीं कर सकते. साथ ही, अभिभावकों को सरकारी स्कूल में दाखिला लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. अगर प्राइवेट स्कूल के पास EWS कोटे की आरक्षित सीटें खाली हैं, तो उन्हें उन बच्चों को दाखिला देना अनिवार्य है. अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो अभिभावक शिकायत कर सकते हैं.
RTE अधिनियम के तहत EWS बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में 8वीं तक मुफ्त पढ़ाई का प्रावधान है. हालांकि, दिल्ली जैसे कुछ राज्यों में सरकारी जमीन पर बने प्राइवेट स्कूलों में ये सुविधा 12वीं तक भी उपलब्ध है. कोर्ट के आदेश के कारण वहां 12वीं तक EWS बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलती है. अन्य राज्यों में भी यह प्रावधान लागू किया जा सकता है क्योंकि संविधान राज्यों और केंद्र सरकार को इस कानून में संशोधन करने का अधिकार देता है, जिससे यह सुविधा 12वीं तक बढ़ाई जा सकती है.