हर साल भारत में 62 मिलियन टन से भी ज्यादा ठोस कचरा उत्पन्न होता है, और यह आंकड़ा 2030 तक 165 मिलियन टन तक पहुँचने की संभावना है. इनमें से केवल 70% कचरा ही इकट्ठा होता है और मात्र 20% का सही तरीके से निपटारा किया जाता है. बाकी कचरा 3,000 से अधिक पुराने कचरा स्थलों (legacy dumpsites) में जमा हो जाता है जो अब खतरे का कारण बन चुके हैं.
देश की राजधानी दिल्ली का उदाहरण लें — वहाँ के तीन मुख्य लैंडफिल पहले ही अपनी सीमा पार कर चुके हैं. ये कचरे के पहाड़ सिर्फ देखने में बदसूरत नहीं हैं, बल्कि मेथेन जैसी जहरीली गैसें छोड़ते हैं, आसपास के लोगों की सेहत पर असर डालते हैं और क़ीमती ज़मीन बेकार करते हैं.
सर्कुलर इकॉनॉमी: कचरे से कमाई का रास्ता
इस चुनौती के बीच एक बड़ा अवसर छिपा है — सर्कुलर इकॉनॉमी का. यह मॉडल इस सोच पर आधारित है कि हर वस्तु को फेंकने की बजाय दोबारा उपयोग में लाया जाए, जिससे संसाधनों की बर्बादी रुके और हर चीज़ से अधिकतम मूल्य निकाला जा सके.
भारत के लिए यह एक बड़ी संभावना है. Ellen MacArthur Foundation की रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत सर्कुलर इकॉनॉमी की दिशा में आगे बढ़े, तो 2050 तक देश को हर साल लगभग 624 बिलियन डॉलर का फायदा हो सकता है.
व्यवहारिक रास्ते जो भारत को अपना सकता है
1. कचरे से कच्चा माल और ऊर्जा प्राप्त करना
हर टन कचरे में धातु, प्लास्टिक, और जैविक पदार्थ जैसे कई उपयोगी चीजें होती हैं. स्रोत पर सही तरीके से कचरे को अलग करने से इन सामग्रियों को दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है. जैविक कचरे से खाद या बायोगैस बनाकर खेती और स्वच्छ ऊर्जा दोनों को बढ़ावा दिया जा सकता है.
2. ज़मीन की वापसी और प्रदूषण में कमी
पुराने कचरा स्थलों की सफाई (बायोमाइनिंग) से ज़मीन दोबारा उपयोग के लायक बनाई जा सकती है. इससे ज़हरीले रसायनों और गैसों का उत्सर्जन भी घटेगा. साफ़ की गई ज़मीन पर हरित क्षेत्र, सौर ऊर्जा परियोजनाएँ या आधारभूत ढांचे खड़े किए जा सकते हैं.
3. हरे रोजगार और नए व्यवसाय के अवसर
कचरे के प्रबंधन से जुड़े क्षेत्रों में करोड़ों ग्रीन जॉब्स पैदा हो सकते हैं. कचरा इकट्ठा करने वाले, तकनीशियन, इंजीनियर – सभी के लिए रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं. साथ ही, नए बिज़नेस मॉडल जैसे कि रिवर्स लॉजिस्टिक्स, प्रोडक्ट-एज़-अ-सर्विस और एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) नई कमाई के दरवाजे खोलते हैं.
4. नीति और साझेदारी का महत्व
सरकार की स्वच्छ भारत मिशन 2.0 और नेशनल रिसोर्स एफिशिएंसी पॉलिसी जैसे कदम सराहनीय हैं. लेकिन इनका प्रभाव तभी दिखेगा जब निजी कंपनियों, स्थानीय निकायों और नागरिकों के बीच सशक्त साझेदारी हो. नीति में स्पष्टता, ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन और पूंजी निवेश इसके लिए ज़रूरी है.