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Puri Rath yatra 2025: कब सुनाबेषा होता है, किस लकड़ी से रथ बनाए जाते हैं? जानें जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी दिलचस्प बातें

जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से खास है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी बेहद गहरा है. इस यात्रा से जुड़े तमाम रोचक तथ्य ऐसे हैं जो न सिर्फ श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, बल्कि छात्रों के जनरल नॉलेज (GK) के लिए भी बेहद उपयोगी हैं.

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Edited By: Princy Sharma
Puri Rath yatra 2025
Courtesy: Social Media

Puri Rath yatra 2025: हर साल की तरह इस बार भी पुरी की पवित्र जगन्नाथ रथ यात्रा पूरी भव्यता और श्रद्धा के साथ आयोजित की जाएगी. इस बार यह यात्रा 27 जून 2025, शुक्रवार को निकाली जाएगी, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेंगे. रथ यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से खास है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी बेहद गहरा है. इस यात्रा से जुड़े तमाम रोचक तथ्य ऐसे हैं जो न सिर्फ श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, बल्कि छात्रों के जनरल नॉलेज (GK) के लिए भी बेहद उपयोगी हैं.

इसलिए हम आपके लिए रथ यात्रा पर आधारित एक खास क्विज लेकर आए हैं, जिसमें 11 महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं. ये प्रश्न आपको इस पावन उत्सव से जुड़ी पौराणिक परंपराओं और ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी देंगे.

यह पर्व भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को समर्पित होता है. तीनों देवताओं को विशेष रथों में बिठाकर जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है.

भगवान बलराम के रथ का नाम क्या है?

बलराम जी का रथ तालध्वजा (या लंगलध्वजा) कहलाता है. यह रथ हरे और लाल रंग का होता है और इसमें 14 पहिए होते हैं.

भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम क्या है?

भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे विशाल होता है, जिसका नाम है नंदीघोष. यह लाल-पीले रंग में सजाया जाता है और इसमें 16 पहिए होते हैं.

तीनों देवता किस मंदिर में जाते हैं?

रथ यात्रा में तीनों देवता गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर माना जाता है. वहां कुछ दिन रुकने के बाद वे वापसी करते हैं. वापसी यात्रा को 'बाहुदा यात्रा' कहा जाता है, जो आमतौर पर नौवें दिन होती है.

सुनाबेषा कब होता है?

देवताओं की वापसी के अगले दिन उन्हें सुनहरे वस्त्रों में सजाया जाता है, जिसे सुनाबेषा कहते हैं. इस दिन लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं. सुभद्रा जी का रथ दर्पदलन कहलाता है. यह छोटा, 12 पहियों वाला रथ होता है, जो लाल और काले रंग में सजा होता है.

रथ यात्रा की शुरुआत 

इतिहास के अनुसार यह परंपरा 12वीं सदी में पूर्वी गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा शुरू की गई थी. हालांकि, कुछ मान्यताओं के अनुसार यह प्राचीन काल से चली आ रही है.

रथ खींचने की परंपरा का नाम

इस परंपरा को 'छेरा पाहरा' कहा जाता है, जिसमें पुरी के गजपति राजा स्वयं झाड़ू लगाकर रथ यात्रा की शुरुआत करते हैं. यह भारतीय समानता और सेवा भाव का प्रतीक है.

तीनों रथों के रंग 

भगवान जगन्नाथ: लाल-पीला
बलराम: लाल-हरा
सुभद्रा: लाल-काला

रथ किस लकड़ी से बनाए जाते हैं?

रथों के निर्माण में फासी, धौरा, सिमली, सहजा और मही और दारूक लकड़ी का उपयोग होता है. हर साल नए रथ बनाए जाते हैं.