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Buddha Purnima 2025: बुद्ध पूर्णिमा के दिन पढ़ें ये 3 खास व्रत कथा, जीवन में होगा सुख-समृद्धि का वास!

Buddha Purnima 2025: आज, 12 मई, सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मनाया जा रहा है. इस दिन व्रत कथा का पालन करना भी बहुत शुभ माना जाता है. आइए जानते हैं बुद्ध पूर्णिमा से जुड़ी कुछ प्रसिद्ध व्रत कथाएं.

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Edited By: Princy Sharma
Buddha Purnima Vrat Katha 2025
Courtesy: Pinterest

Buddha Purnima Vrat Katha 2025: आज, 12 मई, सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मनाया जा रहा है. यह दिन भगवान बुद्ध के जन्म, उनकी बोधि प्राप्ति और महापरिनिर्वाण के दिन के रूप में महत्वपूर्ण है. इस दिन विशेष रूप से भगवान बुद्ध और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना का महत्व है. मान्यता है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी के पूजन से घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य का वास होता है.

वहीं, भगवान बुद्ध की पूजा से आध्यात्मिक उन्नति और ज्ञान की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत कथा का पालन करना भी बहुत शुभ माना जाता है. आइए जानते हैं बुद्ध पूर्णिमा से जुड़ी कुछ प्रसिद्ध व्रत कथाएं.

पहली व्रत कथा

बहुत पहले की बात है, जब धनेश्वर नाम का बहुत ज्यादा अमीर व्यक्ति था, लेकिन उसकी एक भी संतान नहीं थी. एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई, जिन्होंने उसे वैशाख पूर्णिमा का व्रत रखने की सलाह दी. धनेश्वर ने पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से यह व्रत किया और भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा की. इस व्रत के कुछ समय बाद, उसकी पत्नी सुशीला गर्भवती हुई और उन्हें एक सुंदर बेटा हुआ. इसलिए, यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है.

दूसरी व्रत कथा

एक और कहानी के अनुसार, गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहिल्या को श्राप दे दिया था, क्योंकि इंद्र ने धोखा देकर उसे अपवित्र कर दिया था. इस श्राप के कारण अहिल्या पत्थर बन गई. वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान राम जब अपने वनवास के दौरान गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे, तो उन्होंने ऋषि का सम्मान किया और उन्हें भोजन कराया. भोजन के बाद, भगवान राम ने अहिल्या को श्राप से मुक्त कर दिया. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्ति पा सकता है.

बुद्ध पूर्णिमा की तीसरी कथा

वैशाख पूर्णिमा की रात को रानी मायादेवी लुंबिनी के जंगल में एक फूलों से सजी सेज पर सो रही थीं. तभी आकाश से एक तेज रोशनी आई और उनके गर्भ में प्रवेश कर गई, जिससे वे गर्भवती हो गईं. समय आने पर रानी मायादेवी ने भगवान बुद्ध को जन्म दिया. जन्म के समय आकाश में फूलों की वर्षा हुई और चारों ओर मधुर संगीत की ध्वनि गूंजने लगी.

राजकुमार सिद्धार्थ, जो बाद में भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए, एक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जी रहे थे. लेकिन 29 साल की उम्र में, उन्होंने जीवन के दुखों और सच्चाइयों को देखा और वे संसार से विरक्त हो गए. वे ज्ञान की खोज में निकल पड़े और छह साल तक कठोर तपस्या की. अंत में, बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें बोधि प्राप्ति हुई और वे भगवान बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध हुए. 80 वर्ष की आयु में, भगवान बुद्ध ने कुशीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया, जो वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ था.