अहमदाबाद के एक दंपति का मामला हाल ही में सुर्खियों में आया, जहां साधारण-सा खानपान विवाद धीरे-धीरे इतने बड़े मतभेद में बदल गया कि रिश्ता खत्म करने तक की नौबत आ गई.
पत्नी की धार्मिक मान्यताओं के तहत प्याज-लहसुन से परहेज और पति-पारिवारिक सदस्यों की अलग खाद्य आदतों ने घर में लगातार तनाव पैदा किया. अलग-अलग भोजन बनना, घरेलू तकरार और बढ़ती दूरी आखिरकार अदालत तक पहुंची और वर्षों पुराना रिश्ता टूट गया.
साल 2002 में शादी के शुरुआती वर्षों में दंपति के बीच भोजन को लेकर कोई बड़ी समस्या नहीं थी. पत्नी स्वामीनारायण संप्रदाय का पालन करती थी और प्याज-लहसुन नहीं खाती थी. पति और सास सामान्य भोजन लेते रहे. धीरे-धीरे अलग-अलग भोजन बनना शुरू हुआ और घरेलू माहौल में दूरी बढ़ने लगी. रोजमर्रा की बातें बहस में बदलने लगीं और रिश्ते में कड़वाहट गहरी होती गई.
समय के साथ तनाव इतना बढ़ गया कि पत्नी अपने बच्चे को लेकर मायके चली गईं. घर में होने वाले विवाद और कटुता के बीच वह खुद को असुरक्षित और असहज महसूस करने लगी थीं. पति का कहना था कि खाने को लेकर जारी तकरार ने रिश्ते की नींव हिला दी थी. दोनों पक्षों के बीच संवाद कम होता गया और मतभेद स्थायी दूरी में बदल गया.
2013 में पति ने अहमदाबाद फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दायर कर दी. उसने कहा कि पत्नी का खानपान को लेकर लगातार समझौता न करना और घर के माहौल में तनाव पैदा होना उसके लिए मानसिक क्रूरता जैसा था. कोर्ट में उसने यह भी बताया कि कई बार तनाव इतना बढ़ा कि उसे महिलाओं की पुलिस स्टेशन तक शिकायत करनी पड़ी.
फैमिली कोर्ट ने 2024 में तलाक मंजूर कर लिया और पति को भरण-पोषण देने का आदेश दिया. पत्नी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी. उसका कहना था कि पति ने स्थिति को बढ़ाचढ़ाकर पेश किया और उसके धार्मिक अनुशासन को गलत तरीके से प्रस्तुत किया. उसने कहा कि वह घर में शांति बनाए रखना चाहती थी, पर विवाद बढ़ता चला गया.
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान परिस्थिति बदल गई. पत्नी ने कहा कि वह अब तलाक का विरोध नहीं करना चाहती. पति ने लंबित भरण-पोषण की राशि किस्तों में जमा कराने की बात मानी. अदालत ने दोनों की सहमति को देखते हुए पत्नी की याचिका खारिज कर दी और फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा. एक साधारण-सा खाद्य मतभेद आखिरकार दो दशक पुराने रिश्ते को खत्म करने का कारण बन गया.