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Tech इनोवेशन बढ़ाएगा टेंशन, जानें कैसे लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है AI

How AI Becoming threat to Democracy: लोकतंत्र को लेकर 2024 वाकई दिल थाम लेने वाला साल है. एक तरफ जहां आधे से ज्यादा दुनिया चुनावी रण में उतर रही है, वहीं दूसरी तरफ डिजिटल युग के राक्षस - आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के चुनावों में दखल देने की आशंका ने चिंता बढ़ा दी है. सोशल मीडिया पर झूठ का जहर घोलना, फर्जी वीडियो से मतदाताओं को गुमराह करना - ये सब लोकतंत्र के मंदिर में सेंध लगाने के नए हथियार बन सकते हैं.

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Vineet Kumar
AI Controlling Democracy

How AI Becoming threat to Democracy: साल 2024 दुनिया के लिए चुनावी महाकुंभ की तरह है, जहां दुनिया भर में करीब आधी आबादी किसी ना किसी चुनाव में वोट डालेगी! मजेदार बात ये है कि चुनावों की धूम में अब न सिर्फ नेता और पार्टी बल्कि तकनीक भी कूद पड़ी है, वो भी खतरनाक अंदाज में. 2023 में AI का क्रेज जोरों पर था और अब डर ये है कि ये चुनावों में गड़बड़ कर सकते हैं. जरा कल्पना कीजिए कि साल 2023 का AI फ्रेंज 2024 के चुनावी माहौल में और तेज हो गया है. ऐसे में Deepfakes, फर्जी खबरें, झूठे रोबोकॉल ये सब चुनावों को प्रभावित कर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास कम कर सकते हैं. 

लोकतंत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दखल के खतरे ने न सिर्फ रेगुलेशन प्रेमी यूरोप को बल्कि नियमों से आजादी की बात करने वाले अमेरिका तक को हाई अलर्ट पर रखा हुआ है. यहां तक कि भारत भी AI को लेकर नियम बनाने की रेस में शामिल हो गया है.

लोकतंत्र को खत्म करने की वजह बन सकता है AI

हालांकि यह खतरा यहीं पर समाप्त नहीं होता है, सिर्फ डर के चलते बनाए जाने वाले नियमों से भी खतरा गहरा जाता है और जल्दबाजी में कहीं ऐसा न हो कि हम और बड़ी मुसीबत में फंस जाएं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के चलते निकट भविष्य में पैदा हो रहे तीन खतरे तो साफ दिख रहे हैं, जिन पर हम विस्तार से बात करते हैं-

1. झूठी खबरों का तूफान:  जनवरी में हुए चुनावों से जुड़े अनुभव पहले ही खतरे की घंटी बजा चुके हैं. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेता तारिक रहमान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया, जिसमें उन्हें गाजा बम विस्फोट के पीड़ितों के लिए समर्थन कम करने का सुझाव देते हुए दिखाया गया था. मुस्लिम बहुल देश में ऐसा वीडियो चुनाव हारने का तय तरीका था. इस फर्जी वीडियो को हटाने में मेटा (फेसबुक की पैरेंट कंपनी) को काफी समय लगा. यहां ये बहाना जरूर बनाया जा सकता है कि तारिक रहमान कोई टेलर स्विफ्ट नहीं हैं, जिनकी फर्जी अश्लील तस्वीरों के वायरल होते देख सोशल मीडिया को ही ब्लैकआउट कर दिया था. 

मगर जाहिर तौर से, डीपफेक को पकड़ने में थोड़ी तेजी बांग्लादेशी वोटर्स के लिए अच्छा संकेत होता. यह हैरानी की बात नहीं है कि मेटा ने वीडियो हटाने में समय लिया, क्योंकि 2023 में बड़े पैमाने पर छंटनी के कारण उनके कंटेंट मॉडरेशन स्टाफ में काफी कमी हो गई है. इतने सारे देशों में हो रहे चुनावों के साथ कंपनी को यह फैसला करना है कि अपने कम हुए संसाधनों को कहां लगाना है. मेटा का लोगों को कम करना सिर्फ शुरुआत है - सोशल मीडिया पर कई भी कंटेंट मॉडरेशन टीमों को बड़ा झटका लगा है. अमेरिका, यूरोपीय संघ या भारत जैसे बड़े बाजारों के दबाव में वे उन आवाजों पर ज्यादा ध्यान देंगे जो ज्यादा जोर से बोलती हैं. इसका मतलब है कि बांग्लादेश जैसे बाकी दुनिया के वोटर्स को खुद का बचाव करना पड़ सकता है. इस साल कम से कम 83 चुनाव हो रहे हैं. मुश्किल यह है कि गलत सूचनाओं पर कुछ शक्तिशाली सरकारों के दबाव के कारण ही गलत सूचनाओं की मात्रा दुनिया भर में बढ़ सकती है.

2. समाज में बंटवारे की खाई चौड़ी हो जाएगी: AI के नियमों के चलते तीन कंपनियां - OpenAI, Anthropic और Inflection - और ज्यादा ताकतवर हो सकती हैं. सोचिए, इन तीनों को ही तो बड़ी कंपनियां Google, Microsoft और Amazon फंडिंग देती हैं. यूरोप और अमेरिका के नए नियम अच्छे लगते हैं, जैसे AI मॉडल पर "वाटरमार्क" लगाना या उनकी सुरक्षा की जांच करना. पर ये छोटी कंपनियों के लिए मुश्किल हो सकता है. मतलब, बड़े और मजबूत हो जाएंगे और बाकी पीछे छूट जाएंगे. 

3. नियत अच्छी पर फल उल्टा: AI को सही दिशा देने के लिए कई नियम, दिशा-निर्देश बनाए जा रहे हैं. पर ये भी दिक्कत ला सकते हैं. जैसे, किसकी नैतिकता और मूल्यों को माना जाए? आज हर तरफ मतभेद है, राजनीति से धर्म तक. हर समाज के मूल्य अलग हैं. क्या बोलने की पूरी आजादी होनी चाहिए या कमजोरों की रक्षा के लिए पाबंदी लगनी चाहिए? AI के जोखिम को लेकर भी सोच अलग-अलग हैं. कुछ मानते हैं ये खतरनाक है, कुछ कहते हैं जरूरत से ज्यादा डर रहे हैं. ये सब मिलकर और उलझन पैदा कर सकते हैं.

स्टार्टअप्स के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं जल्दबाजी वाले नियम

सरकारें हरकत में आ गई हैं, जल्दबाजी में कानून बनाए जा रहे हैं. लेकिन कहीं ऐसा न हो कि जल्दबाजी में लिए गए फैसले और सख्त नियम छोटे स्टार्ट-अप्स का गला घोंट दें और बड़ी कंपनियों को और ताकत दे दें. इससे एकाधिकार का रास्ता खुल सकता है और नैतिक चूक की आशंका भी बढ़ सकती है. दूसरी ओर, ये नियम खुद ही सिरदर्द बन सकते हैं. "क्या करें, क्या न करें?" इस सवाल पर हर किसी की अपनी राय है. ऊपर से थोपे गए, जल्दबाजी में बने नियम कहीं लोकतंत्र की जड़ें ही न काट दें. इसलिए, सोच-समझकर कदम उठाना बेहद जरूरी है.

बीमारी से ज्यादा खतरनाक हो सकती है ये जल्दबाजी

हालांकि, अभी ये कहना मुश्किल है कि AI कितना बड़ा खतरा है. लेकिन एक बात पक्की है - लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सिर्फ AI को ही नहीं, बल्कि बाकी सारी समस्याओं पर भी ध्यान देना होगा. वरना इलाज का ये तरीका बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है! इसलिए, 2024 को सिर्फ AI के साल के रूप में न देखें. ये एक ऐसा साल है जहां हमें लोकतंत्र के पहरेदार बनना है. हमें न सिर्फ गलत सूचनाओं और धोखे से लड़ना है, बल्कि जल्दबाजी और गैर-जरूरी नियमों से भी सतर्क रहना है. लोकतंत्र तभी मजबूत होगा, जब हम सब मिलकर उसकी रक्षा करेंगे.