बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से सामने आई एक किसान की कहानी आज हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन रही है. सतीनपुरवा गांव के मोहम्मद सलमान ने सीमित संसाधनों और आर्थिक तंगी के बावजूद हार नहीं मानी. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने खेती को नए नजरिये से देखा और वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाया. पारंपरिक फसलों से आगे बढ़कर नकदी फसलों और नर्सरी व्यवसाय में कदम रखा. आज उनकी पहचान एक सफल और प्रगतिशील किसान के रूप में है.
मोहम्मद सलमान एक बड़े परिवार से आते हैं, जहां 14 सदस्य हैं. विरासत में मिली दो एकड़ जमीन से पारंपरिक धान और गेहूं की खेती होती थी. इससे घर का खर्च मुश्किल से चलता था. कई बार सलमान को दूसरों के खेतों में मजदूरी करनी पड़ी. हालांकि, उनके मन में हमेशा कुछ अलग और बड़ा करने की इच्छा बनी रही. यही सोच आगे चलकर उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी.
साल 2016 में पढ़ाई पूरी करने के बाद सलमान ने खेती को व्यवसाय के रूप में अपनाने का फैसला किया. उन्होंने वैज्ञानिक तरीकों और इंटरक्रॉपिंग मॉडल को चुना. अमरूद, पपीता, टमाटर, तरबूज, खरबूजा, खीरा और ग्लोरियस जैसी नकदी फसलें लगाईं. शुरुआत आसान नहीं रही और मुनाफा सीमित था. लेकिन अनुभव बढ़ने के साथ उत्पादन और आमदनी दोनों में सुधार हुआ.
मेहनत और सही रणनीति से सलमान ने धीरे-धीरे जमीन का दायरा बढ़ाया. आज वह करीब 29 एकड़ में आधुनिक खेती कर रहे हैं. फसलों के चयन से लेकर सिंचाई और बाजार तक हर स्तर पर उन्होंने सोच-समझकर फैसले लिए. स्थानीय मंडियों के साथ सीधे व्यापारियों से संपर्क बनाकर उन्होंने अपनी उपज का बेहतर दाम हासिल किया.
खेती के साथ सलमान ने पौधों की नर्सरी का काम भी शुरू किया. अमरूद और पपीते के पौधों की उनकी नर्सरी की मांग कई जिलों तक है. सीजन से पहले ही किसान एडवांस बुकिंग करा लेते हैं. इससे उन्हें स्थिर आय मिली और जोखिम भी कम हुआ. नर्सरी व्यवसाय ने उनकी पहचान को एक सफल एग्री-उद्यमी के रूप में मजबूत किया.
आज सलमान के खेतों और नर्सरी में 25 से 30 लोग नियमित रूप से काम करते हैं. उनका सालाना टर्नओवर करीब 70 लाख रुपये तक पहुंच चुका है. इस आमदनी से उन्होंने जमीन खरीदी, घर बनाया और परिवार को स्थिर जीवन दिया. सलमान का कहना है कि खेती में तकनीक, बाजार की समझ और धैर्य जरूरी है. सही दिशा में प्रयास किया जाए तो खेती सबसे लाभकारी व्यवसाय बन सकती है.