Ghaziabad Lok Sabha Seat : गाजियाबाद लोकसभा सीट को बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है. लंबे समय से यहां की राजनीतिक फिजा में कमल खिलता रहा है. लेकिन अबकी बार बीजेपी ने इस सीट से जनरल वीके सिंह का टिकट दिया है और वर्तमान विधायक अतुल गर्ग को मौका दिया है. वहीं कांग्रेस ने गाजियाबाद से डॉली शर्मा को मैदान पर उतार दिया है.
डॉली कांग्रेस की प्रवक्ता की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. इस बार गाजियाबाद सीट में कड़ा मुकाबला देखने के लिए मिल सकता है. इस सीट में चुनाव के लि ए नामांकन प्रक्रिया 28 मार्च से शुरू हो गई है. गाजियाबाद में 26 अप्रैल को चुनाव होना है.
दिल्ली-एनसीआर से लगी गाजियाबाद लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीट आती हैं. इसमें लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद और धौलाना है. सभी पांचों सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं. खुद अतुल गर्ग गाजियाबाद से विधायक हैं. 2008 से पहले यह हापुड़-गाजियाबाद लोकसभा सीट थी. परिसीमन के बाद इसे स्वतंत्र गाजियाबाद लोकसभा सीट बना दिया गया और हापुड़ को यहां से हटाकर मेरठ लोकसभा सीट में जोड़ दिया गया. 2019 के चुनाव की बात की जाए तो बीजेपी के जनरल वीके सिंह को 9.44 लाख वोट मिले थे. समाजवादी पार्टी के सुरेश बंसल दूसरे स्थान पर थे. उनको 4.43 लाख वोट मिले थे.
गाजियाबाद लोकसभा सीट साल 2009 में अस्तित्व में आई थी. अब तक यहां पर 7 बार बीजेपी का तो 5 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है. आजादी के बाद 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, लेकिन तब गाजियाबाद हापुड़ लोकसभा क्षेत्र के तहत आता था और यहां पर 1957 में पहला सांसद चुनने का मौका मिला. इस चुनाव में कांग्रेस के कृष्णचंद शर्मा विजयी रहे थे. फिर 1962 में कांग्रेस की कमला चौधरी चुनी गई थीं तो 1967 में प्रकाशवीर शास्त्री निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते. 1971 में कांग्रेस के टिकट पर बीपी मौर्य, 1977 में भारतीय लोकदल के टिकट पर कुंवर महमूद अली संसद पहुंचे थे.
साल 1980 में जनता पार्टी सेकुलर के टिकट पर अनवर अहमद, 1984 में कांग्रेस के केएन सिंह और 1989 में जनता दल के टिकट पर केसी त्यागी यहां से चुनाव जीते. इसके बाद बीजेपी ने यहां पर जीत की ऐसी एंट्री मारी और ज्यादातर समय इसी के पास ही सीट रही है. 1991 से 1999 तक चार बार डॉ. रमेश चंद तोमर चुनाव जीते. लेकिन 2004 में कांग्रेस के टिकट पर सुरेंद्र प्रकाश गोयल भी विजयी हुए.
साल 2008 में परिसीमन के बाद हापुड़ सीट का ज्यादातर हिस्सा मेरठ संसदीय क्षेत्र में मिला दिया गया. वहीं लोनी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर गाजियाबाद लोकसभा सीट बना दी गई. ऐसे में गाजियाबाद लोकसभा सीट से 2009 के पहले आम चुनाव में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह मैदान में उतरे और कांग्रेस के सुरेंद्र प्रकाश गोयल को 90 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया और वह गाजियाबाद सीट से पहले सांसद बने.
2014 के चुनाव में राजनाथ सिंह लखनऊ सीट पर चले गए और यहां से बीजेपी ने सेना से रिटायर्ड जनरल वीके सिंह को उतारा. इस चुनाव में मोदी लहर की साफ झलक दिखाई दी, उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार और फिल्मी सितारे राजबब्बर को 5.67 लाख से भी अधिक मतों से चुनाव हराया. 2019 के चुनाव में वीके सिंह ने फिर 5 लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव में जीत हासिल की थी.
ऐसा कहा जाता है कि गाजियाबाद की स्थापना 1740 में वजीर गाजी-उद-दीन ने की थी, जिन्होंने इसे गाजीउद्दीन नगर कहा जाता था. बाद में यहां रेलवे लाइन खुलने के बाद जगह का नाम छोटा कर गाजियाबाद कर दिया गया. जिला गाजियाबाद मेरठ मंडल के 6 जिलों में शामिल है. 2011 की जनगणना के मुताबिक गाजियाबाद की कुल आबादी 4,681,645 थी जिसमें पुरुषों की आबादी 2,488,834 थी तो महिलाओं की आबादी 2,192,811 थी.
धर्म के आधार पर देखें तो यहां पर 72.93 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जबकि 25.35% मुस्लिम आबादी है. 23,001 आबादी सिख समाज के लोग हैं. गाजियाबाद संसदीय क्षेत्र में करीब 5 लाख मुस्लिम, 6 लाख ब्राह्मण वोटर्स के साथ 3-3 लाख वैश्य और जाटव वोटर्स रहते हैं. इनके अलावा करीब 2.5 लाख राजपूत और ठाकुर के अलावा दो लाख जाट वोटर्स भी चुनाव में अपनी खास भूमिका निभाते हैं. ऐसे में यहां पर चुनाव में मुस्लिम वोटर्स की अपनी अहमियत रही है.
अतुल गर्ग गाजियाबाद से विधायक हैं. उनको राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता दिनेश चंद गर्ग गाजियाबाद से दो बार मेयर रह चुके हैं. वे गाजियाबाद नगर निगम के पहले मेयर थे. उनके परिवार का जनसंघ से पुराना नाता है. दिनेश चंद गर्ग गाजियाबाद नगर पालिका के भी अध्यक्ष रह चुके थे. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इंदिरा लहर में वे विधायक का चुनाव हार गए थे.
2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने डॉली शर्मा को गाजियाबाद से अपना उम्मीदवार बनाया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. वीके सिंह ने डॉली शर्मा को 5 लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था. इस चुनाव में डॉली शर्मा को हार मिली थी. डॉली शर्मा नोएडा स्थित आईएमएस कॉलेज से पढ़ी हैं. उनके पति दीपक शर्मा कारोबारी हैं. 2017 में डॉली शर्मा ने निकाय चुनाव में उतार कर राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. हालांकि, इस चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी आशा शर्मा से उनकी हार हो गई थी.