दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने पुलिस प्रशासन से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों तक को हैरान कर दिया. यहां एक शख्स अपने किराए के मकान से चार अलग-अलग "माइक्रोनेशन्स" के फर्जी दूतावास चला रहा था. ये माइक्रोनेशन असल में कोई कानूनी मान्यता प्राप्त देश नहीं हैं, बल्कि कुछ लोगों द्वारा बनाए गए प्रतीकात्मक "राष्ट्र" हैं, जो न तो अंतरराष्ट्रीय नियमों के दायरे में आते हैं और न ही किसी संप्रभुता से जुड़े होते हैं.
उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स ने 22 जुलाई को गाजियाबाद में हरषवर्धन जैन नामक 47 वर्षीय व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जो वेस्टआर्कटिका, सेबोर्गा, पोल्बिया और लाडोनिया नामक माइक्रोनेशन्स के फर्जी दूतावास चला रहा था. वह खुद को इन देशों का 'राजदूत' बताता था और उसके पास से फर्जी राजनायिक नंबर प्लेट, सील, और लग्ज़री गाड़ियाँ बरामद की गईं. पुलिस को शक है कि वह विदेशी नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी, हवाला लेन-देन और जासूसी जैसी गतिविधियों में शामिल था. मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायिक हिरासत के लिए कोर्ट में अर्जी दी गई है.
जिन माइक्रोनेशन्स के नाम पर हरषवर्धन जैन ने फर्जीवाड़ा किया, वे असल में प्रतीकात्मक या सांस्कृतिक संगठन हैं. जैसे वेस्टआर्कटिका को एक पूर्व अमेरिकी नौसेना अधिकारी ने शुरू किया था, जो खुद को "ग्रैंड ड्यूक" कहता है और इस राष्ट्र का लक्ष्य पर्यावरण रक्षा बताया गया है. वहीं सेबोर्गा, जो इटली और फ्रांस की सीमा के पास स्थित है, प्रतीकात्मक राजशाही और मंत्रिमंडल के साथ संचालित होता है, लेकिन उसकी कोई कानूनी स्वायत्तता नहीं है. लाडोनिया, स्वीडन में स्थित एक "कलात्मक राष्ट्र", खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक बताता है और उसके लाखों वर्चुअल नागरिक बताए जाते हैं.
इस मामले ने भारतीय पुलिस को एक अनूठी स्थिति में डाल दिया है, जहां उनके पास ऐसी फर्जी संस्थाओं से निपटने का कोई ठोस कानूनी ढांचा नहीं है. चूंकि ये माइक्रोनेशन्स किसी भी संप्रभु देश द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हैं, इसलिए विदेश मंत्रालय से सहयोग लेना भी कठिन होता है. लखनऊ विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर भानु प्रताप ने स्पष्ट किया कि माइक्रोनेशन किसी भी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में नहीं आते. मोंटेवीडियो कन्वेंशन के अनुसार राज्य बनने के लिए जनसंख्या, भू-भाग, सरकार और दूसरे देशों के साथ औपचारिक संबंध होने जरूरी हैं, जो इन "राष्ट्रों" में नहीं हैं.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजपाल बुडानिया ने चेतावनी दी कि ऐसे प्रतीकात्मक "राष्ट्र" आसानी से धोखाधड़ी और आपराधिक गतिविधियों के अड्डे बन सकते हैं, जैसा कि गाजियाबाद मामले से जाहिर होता है. उन्होंने इस मामले को पुलिस और खुफिया तंत्र की बड़ी विफलता बताया है. उनका कहना है कि अगर ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति होती है या ये समाज और वैश्विक व्यवस्था को प्रभावित करने लगते हैं, तो इन पर गंभीर अकादमिक शोध और सरकारी नीति बनाना जरूरी होगा.