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पुलिस ने गैंगस्टर मौलाना का सिर मुंडवाकर जुलूस निकाला, हाईकोर्ट ने दिए जांच के आदेश

भोपाल के गैंगस्टर जुबैर मौलाना को गिरफ्तार करने के बाद उसके सिर, दाढ़ी और मूंछ मुंडवाकर शहर में जुलूस निकालना पुलिस को भारी पड़ गया है. मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले को मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए जांच के आदेश दिए हैं. पुलिस का कहना है कि जुबैर ने पहचान छिपाने के लिए खुद ही बाल और दाढ़ी हटाई थी, लेकिन परिवार ने इसे जानबूझकर की गई सार्वजनिक बेइज्जती बताया है.

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Edited By: Kuldeep Sharma
gangster Zubair Maulana had
Courtesy: web

भोपाल में एक कुख्यात गैंगस्टर जुबैर मौलाना की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उसे सिर और चेहरा मुंडवा कर सार्वजनिक रूप से शहर में घुमाया. इस घटना का वीडियो वायरल होते ही यह मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया. अब जबलपुर हाई कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए मानवाधिकार आयोग को मामले की जांच सौंप दी है. याचिका जुबैर की पत्नी ने दायर की थी, जिसमें पुलिस पर मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है.

मानवाधिकार उल्लंघन पर हाई कोर्ट की सख्ती

जबलपुर हाई कोर्ट के जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने इस मामले को बेहद संवेदनशील मानते हुए मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग को जांच करने और ज़िम्मेदार अधिकारियों पर उचित कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. याचिका में जुबैर की पत्नी शमीम बानो ने आरोप लगाया कि यह सिर्फ गिरफ्तारी नहीं, बल्कि सार्वजनिक रूप से अपमान करने की कोशिश थी. उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 21, 22 और 25 का उल्लंघन बताया, जो व्यक्ति की गरिमा, धार्मिक स्वतंत्रता और कानूनी संरक्षण की गारंटी देते हैं.

पुलिस का बचाव और जुबैर का आपराधिक रिकॉर्ड

पुलिस ने अदालत को बताया कि जुबैर मौलाना एक वांछित अपराधी था, जिस पर हत्या की कोशिश, अपहरण, आत्महत्या के लिए उकसाना, पुलिस पर हमला जैसे 50 से ज्यादा गंभीर मामले दर्ज हैं. बीते छह महीने से वह फरार था और उसकी गिरफ्तारी पर ₹30,000 का इनाम भी घोषित था. पुलिस का कहना है कि गिरफ्तारी से बचने के लिए जुबैर ने खुद ही दाढ़ी और बाल साफ कर लिए थे, जिससे वह पहचान से बच सके. गिरफ्तारी के दौरान उसके पास देसी पिस्टल, चार कारतूस और तीन चाकू बरामद हुए.

परिवार का विरोध और कोर्ट की अगली कार्रवाई

याचिकाकर्ता शमीम बानो ने अदालत से मांग की कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की जाए और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू हो. उन्होंने आरोप लगाया कि जुबैर को जेल भेजने के बजाय पुलिस ने उसका जुलूस निकालकर उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया. कोर्ट ने साफ किया कि वह जुबैर के अपराधों के आधार पर कोई राय नहीं दे रहा है, लेकिन गिरफ्तारी की प्रक्रिया में की गई यह कार्रवाई जांच के योग्य है. अदालत ने आदेश की प्रमाणित प्रति मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को सौंपने का निर्देश भी याचिकाकर्ता को दिया है.