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India Daily

दिल्ली कार ब्लास्ट: अल फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर पर फर्जी दस्तावेजों के सहारे मृत हिंदुओं की जमीनें हड़पने का आरोप

ईडी ने अल फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी पर दिल्ली के मदनपुर खादर में मृत हिंदुओं की जमीनों को फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से अपने नाम कराने का आरोप लगा है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Al Falah University india daily live
Courtesy: x

ईडी की ताजा कार्रवाई ने अल फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े विवाद को और गहरा कर दिया है. एजेंसी का दावा है कि यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी ने फर्जी कागजों के सहारे मृतक हिंदुओं की जमीन हस्तांतरित करवाई. यह वही संस्थान है जो पहले ही रेड फोर्ट कार ब्लास्ट केस से जुड़े मॉड्यूल में तीन प्रोफेसरों की कथित भूमिका के बाद जांच के घेरे में है. अब ईडी जमीन सौदेबाजी से जुड़े नए आरोपों की तहकीकात कर रही है.

फर्जी जीपीए के सहारे जमीन ट्रांसफर का आरोप

ईडी के मुताबिक मदनपुर खादर के खसरा नंबर 792 की जमीन तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन को ट्रांसफर की गई. यह फाउंडेशन सिद्दीकी से जुड़ा बताया जा रहा है. एजेंसी कहती है कि जो जीपीए पेश किया गया, वह 2004 का है, जबकि दस्तावेज में दर्ज ज्यादातर मालिकों की 1972 से 1998 के बीच ही मौत हो चुकी थी.

मृत हिंदू लोगों के नाम पर तैयार किए गए थे दस्तावेज

जांच एजेंसियों का कहना है कि जमीन हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया इन्हीं फर्जी कागजों पर टिकी थी. ये फर्जी कागज मृत हिंदू लोगों के नाम पर तैयार किए गए थे और ये दस्तावेज न केवल गैर कानूनी थे, बल्कि इन्हें बार-बार इस्तेमाल कर जमीन को दोबारा पंजीकृत कराया गया.

ईडी हिरासत में सिद्दीकी से पूछताछ जारी

सिद्दीकी को 18 नवंबर को मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तार किया गया था. एजेंसी कहती है कि तलाशी के दौरान मिले कागजों और डिजिटल सबूतों से जमीन सौदे से जुड़ी अनियमितताओं की पुष्टि होती है. फिलहाल उनसे कई दौर की पूछताछ चल रही है.

रेड फोर्ट ब्लास्ट मॉड्यूल से जुड़ाव के बाद बढ़ी कार्रवाई

अल फलाह यूनिवर्सिटी पहले ही सुर्खियों में थी क्योंकि i20 कार ब्लास्ट केस का मुख्य आरोपी डॉ. उमर उन नबी इसी संस्थान का पूर्व छात्र था. इसके बाद ईडी ने विश्वविद्यालय और उससे जुड़े दफ्तरों में बड़े पैमाने पर छापेमारी की थी.

यूजीसी और एनएएसी मान्यता को लेकर भी गंभीर सवाल

जांच में सामने आया कि यूनिवर्सिटी ने मान्यता को लेकर भ्रामक दावे किए थे. यूजीसी ने साफ किया कि संस्थान केवल राज्य निजी विश्वविद्यालय की श्रेणी में आता है और किसी तरह की ग्रांट या विशेष मान्यता के योग्य नहीं है. एजेंसी अब नौ शेल कंपनियों की भी जांच कर रही है जो एक ही पते से संचालित पाई गईं.