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दिल्ली में अभी नहीं होगी कृत्रिम बारिश, क्या है क्लाउड सीडिंग और कैसे करती है काम?

Cloud Seeding In Delhi: क्लाउड सीडिंग परियोजना इस साल जुलाई में शुरू की गई थी, लेकिन मानसून में बदलाव, विक्षोभ और बादलों की कमी जैसी वजहों से इसे कई बार टालना पड़ा.

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Edited By: Kanhaiya Kumar Jha
Cloud Seeding In Delhi
Courtesy: Gemini AI

Cloud Seeding In Delhi: दिल्ली सरकार में मंत्री मजिंदर सिंह सिरसा ने बुधवार को कहा कि राजधानी दिल्ली में कृत्रिम वर्षा प्रयोग की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, लेकिन परीक्षण फिलहाल उपयुक्त बादलों के अभाव में टल गया है. पर्यावरण मंत्री ने बताया कि जैसे ही आसमान में अनुकूल बादल बनेंगे, प्रयोग तुरंत शुरू कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि अनुमति से लेकर उड़ान व्यवस्था तक सब कुछ तैयार है, अब बस सही मौसम का इंतज़ार है.

आईएमडी ने भी फिलहाल 25 अक्टूबर तक प्रयोग के लिए कोई निश्चित समय सीमा तय नहीं की है. इससे पहले दिवाली के बाद किसी भी दिन परीक्षण शुरू करने की योजना थी, लेकिन वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में बढ़ोतरी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया.

जुलाई में शुरू की गई थी यह परियोजना

क्लाउड सीडिंग परियोजना इस साल जुलाई में शुरू की गई थी, लेकिन मानसून में बदलाव, विक्षोभ और बादलों की कमी जैसी वजहों से इसे कई बार टालना पड़ा. सिरसा ने बताया कि परीक्षण के लिए सेसना विमान को मेरठ में तैनात किया गया है. पायलटों को लाइसेंस मिल गया है और उपकरण तैयार हैं. जैसे ही आईएमडी से हरी झंडी मिलेगी, उड़ान शुरू कर दी जाएगी. बता दें कि उत्तर-पश्चिम दिल्ली में चार दिनों तक सफल परीक्षण उड़ानें पहले ही पूरी की जा चुकी हैं.

मंत्री ने कहा कि पिछली सरकारें सिर्फ़ घोषणाएं करती थीं, लेकिन हमने सात महीनों में ज़मीनी स्तर पर काम पूरा किया. अनुमतियां, समझौते, वैज्ञानिकों से परामर्श और तकनीकी व्यवस्था सब हो चुकी है.

कैसे काम करती है यह तकनीक?

इस ऑपरेशन में सिल्वर आयोडाइड (AgI) का उपयोग किया जाएगा, जो बादलों में बर्फ के क्रिस्टल बनने में मदद करता है. इसके ज़रिए वर्षा की संभावना बढ़ाई जाती है, जिससे प्रदूषण के स्तर में 50 से 80 AQI अंकों तक सुधार हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि कृत्रिम वर्षा के बाद बहुत खराब श्रेणी का AQI खराब या मध्यम स्तर तक आ सकता है.

IIT कानपुर के सहयोग से चलाई जा रही है परियोजना

परियोजना IIT कानपुर के सहयोग से चलाई जा रही है, जिसने इस मिशन के लिए विमान को विशेष रूप से संशोधित किया है. निंबोस्ट्रेटस बादल, जो आमतौर पर ज़मीन से 500 से 6,000 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं, सीडिंग के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं, लेकिन इनमें पर्याप्त नमी होनी चाहिए. वर्तमान में दिल्ली के आसमान में नमी और बादलों का घनत्व कम होने के कारण परीक्षण में देरी हो रही है.

सरकार का मानना है कि इस प्रयोग की सफलता से राजधानी की वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है, खासकर ठंड के मौसम में जब प्रदूषण अपने चरम पर होता है.