menu-icon
India Daily

क्या है नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, जिस पर हर भारतीय करता है गर्व

नालंदा विश्वविद्यालय, दुनिया का पहला ऐसा विश्वविद्यालय था जहां छात्र रहकर पढ़ाई करते थे. इसकी स्थापना 427 ई. में सम्राट कुमारगुप्त ने नालंदा में की थी. विद्वान भिक्षुओं और शिक्षकों की कर्तव्यनिष्ठा ने इसे दुनिया में ख्याति दिलाई लेकिन खिलजी ने इसे खंडहर में तब्दील कर दिया. अब उस प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहरों के पास नया नालंदा विश्वविद्यालय परिसर बन कर तैयार हो गया है जिसका उद्घाटन आज प्रधानमंत्री मोदी करने जा रहे हैं.

auth-image
Edited By: Khushboo Chaudhary
Nalanda University

दुनिया के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों की जब भी बात होती है तो उसमें नालंदा विश्वविद्यालय का नाम सबसे पहले आता है. बिहार की राजधानी पटना से करीब 120 किलीमीटर दक्षिण-उत्तर में प्रचानी नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौजूद हैं. 815 साल के लंबे इंतजार के बाद यह शिक्षा का केंद्र एक बार फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट कर आ रहा है. आज इसके नए परिसर का उद्धाघटन पीएम मोदी के द्वारा होने जा रही है. पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के सपनों का नालंदा विश्वविद्यालय अब साकार हो गया है.


नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, शिक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसकी समृद्धि को दिखाता है. इसका महत्व ना केवल भारत के लिए बल्की पूरे विश्व के लिए अनमोल धरोहर में से एक है. नालांदा यूनिवर्सिटी प्राचीन भारत का एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षा का केंद्र बिंदू है. इसे दुनिया का पहला आवासीय यूनिवर्सिटी माना जाता है, जहां छात्र और शिक्षक एक ही परिसर में रहते थे. 

किसने की थी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना?

इन यूनिवर्सिटी की स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने की थी. बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला. इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अनुमान आप इससे लगा सकते हैं कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक बड़ी सी लाइब्रेरी थी. जिसमें 3 लाख से अधिक किताबें रखी रहती थी.

यहां एक समय में 10,000 से भी ज्यादा छात्र और 2,700 से अधिक शिक्षक होते थे. छात्रों का चयन उनकी योग्यता के आधार पर की जाती थी. इस विश्वविद्यालय में शिक्षा से लेकर रहना और खाना तक नि: शुल्क होता था. इस विश्वविद्यालय में केवल भारत से ही नहीं देश के बाहर से भी छात्र पढ़ने आते थे. जैसे कोरिया, जापान, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस और मंगोलिया आदि के देशों से छात्र यहां आते थे.


नालंदा विश्वविद्यालय में साहित्य, ज्योतिष, कानून, मनोविज्ञान, विज्ञान, युद्धनीति, इतिहास, गणित आदि तमाम ऐसे विषय पढ़ाए जाते थे. इस विश्वविद्यालय में एक ऐसी लाइब्रेरी थी जिसका नाम था 'धर्म गूंज'. जिसका अर्थ होता है सत्य का पर्वत. यह एक 9 मंजिला इमारत था. जिसको तीन भागों में विभाजित किया गया था. तीनों के नाम इस प्रकार थे. रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर.

किसने किया था नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण?

1193 ई. में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी. जिसके बाद नालांदा विश्वविद्यालय पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया. खिलजी ने पूरे परिसर में खासकर इसकी लाइब्रेरी में ऐसी आग लगी की पूरा पुस्तकालय जल कर खाख हो गया. कहा जाता है कि विश्व विद्यालय में इतनी पुस्तकें थी की पूरे तीन महीने तक यहां के पुस्तकालय में आग धधकती रही. उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले.

 खुदाई में मिले1.5 लाख वर्ग फीट अवशेष

आपको बता दें कि इसी विश्वविद्यालय से नागार्जुन, धर्मपाल, हर्षवर्धन जैसे कई महान विद्धानों ने यहां से शिक्षा प्राप्त की थी. जब नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई हुई तो 1.5 लाख वर्ग फीट में अवेशष मिले थे, जो इसके विशाल और विस्तृत परिसर का केवल 10 प्रतिशत वाला हिस्सा माना जाता है.

455 एकड़ जमीन में बना नया नालंदा विश्वविद्यालय

साल 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सुझाव के बाद बिहार विधानसभा ने एक नए विश्वविद्यालय की नींव रखने के लिए एक विधेयक पारित किया. जिसके बाद सरकार ने विश्वविद्यालय के लिए 455 एकड़ जमीन मुहैया कराई, जिसे अब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी को बिहार के राजगीर में 25 नंवबर 2010 को संसद के एक विशेष अधिनियम द्वारा बनाया गया और एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में नामित किया गया.