Lok Sabha Election 2024: पिछली बार यानी 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से 39 सीटों पर NDA ने कब्जा किया था. इनमें से नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइडेट यानी JDU ने 16 सीटों पर कब्जा किया था. उस दौरान NDA में जो सीट शेयरिंग का फार्मूला बना था, उसके आधार पर नीतीश की पार्टी को 17 सीटें मिली थीं. अब सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार की पार्टी को 2019 के फार्मूले पर ही सीटें मिलेंगी या फिर एनडीए नई रणनीति बनाएगी.
दरअसल, जब नीतीश कुमार विपक्षी दलों वालों INDIA गठबंधन में थे, तब उनकी पार्टी यानी जदयू लगातार राजद और कांग्रेस पर ये दबाव बना रही थी कि सीट बंटवारा जल्द से जल्द हो जाए. जेडीयू का कहना था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 17 में 16 सीटें जीती थी, इसलिए उन्हें इस बार भी 17 सीटें मिलनी चाहिए, बाकी बची सीटों पर राजद, कांग्रेस और लेफ्ट बंटवारा कर ले. हालांकि, नीतीश के सुझाव पर न तो कांग्रेस ने अमल किया और न ही राजद ने. लिहाजा नीतीश कुमार ने पलटी मार ली और एनडीए में शामिल हो गए. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या भाजपा इस बार भी 2019 की चुनाव की तरह अपने बराबर सीट नीतीश कुमार की पार्टी को देगी?
2020 में 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में भले ही नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 122 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजों के बाद उन्हें पटखनी खानी पड़ी थी. 122 सीटों पर लड़ने वाली जदयू को 43 सीटें मिली थीं, जबकि 121 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा को 74 सीटें मिली थीं. सूत्रों के मुताबिक, भाजपा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बार बार पलटी मारने और उनके गिरते ग्राफ को सीट शेयरिंग में इस्तेमाल कर सकती है.
भाजपा में कई सीनियर नेता मानते हैं कि नीतीश एक बार फिर दबाव की राजनीति कर सकते हैं, पर बीजेपी ने इस बार नीतीश को अपनी शर्तों पर समर्थन दिया है. ये इस बात में साफ झलकता है कि नीतीश चाहते थे कि सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए, पर BJP के केंद्रीय नेतृत्व ने नीतीश के ही धुर विरोधी माने जाने वाले सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को ये पद सौंप दिया. दूसरी तरफ नीतीश अपनी विश्वसनीयता भी खो चुके हैं और अभी कम के कम आगामी लोकसभा चुनाव तक पलटी मारने की स्थिति में नहीं रहेंगे.
नीतीश को भी ये पता है कि 2020 में गणित उनके फेवर में था, पर अबकी बार उन्होंने बीजेपी का दामन ठीक उसी तरह से पकड़ा है, जैसे कोई डूब रहा शख्स किसी तैरती नाव को पकड़ता है. भाजपा भी नहीं चाहेगी कि सीट बंटवारे में नीतीश कुमार को खुश करने के चक्कर में अपने पुराने सहयोगी चिराग पासवान या उनके चाचा पशुपति पारस को नाराज कर दे या खुद से अलग कर दे.
दूसरी तरफ, अब एनडीए के साथ हिंदुस्तान आवाम मोर्चा यानी जीतन राम मांझी की पार्टी HUM भी है. वहीं, विकासशील इंसान पार्टी के चीफ मुकेश सहनी के भी NDA में आने की चर्चा है और उपेंद्र कुशवाहा भी पहले से साथ में हैं. भाजपा चाहेगी कि नीतीश को कम से कम सीटों पर मनवाया जाए, ताकि बीजेपी अपने खुद का स्ट्राइक रेट मैक्सीमाइज कर सके. इन सभी कारणों को देखा जाए, तो शायद नीतीश कुमार को कम सीटों पर समझौता करना पड़ सकता है.
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा ने नीतीश कुमार को इसी शर्त पे समर्थन दिया है कि उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड को लोकसभा में कम सीटें दी जाएगी. साथ ही, अगर बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो सीटें जदयू की सीटें बढ़ेंगी, लेकिन ये संभव नहीं है क्योंकि नीतीश कुमार खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार को आगामी लोकसभा चुनाव में 10 से 12 सीटें दी जा सकतीं हैं.