पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एक अनोखा ट्रेंड देखने को मिल रहा है. यहां कई पूर्व नौकरशाह और पुलिस अधिकारी राजनीति में उतरकर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने अपने पहले चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों को सक्रिय रूप से मैदान में उतारा है. इनमें से कई के पास प्रशासनिक अनुभव, तकनीकी ज्ञान और जनता से गहरा जुड़ाव है.
दारभंगा से जन सुराज ने पूर्व आईपीएस अधिकारी राकेश कुमार मिश्रा को टिकट दिया है. मिश्रा 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं और उन्होंने बिहार पुलिस में एडीजी से लेकर डीजी तक कई अहम पद संभाले हैं. वे भाजपा के संजय सरावगी के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं.
वहीं बक्सर से पूर्व आईपीएस अधिकारी मिश्रा (2011 बैच) भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं. उन्होंने पहले जन सुराज से जुड़कर युवा अध्यक्ष के रूप में काम किया था और बाद में भाजपा में शामिल हो गए. भोर सीट से जेडीयू ने पूर्व आईपीएस अधिकारी सुनील कुमार को टिकट दिया है. वे नीतीश कुमार सरकार में मंत्री भी हैं. 1987 बैच के अधिकारी सुनील कुमार ने बिहार पुलिस में 33 साल सेवा दी. इस सीट पर वे सीपीआई (एम-एल) के उम्मीदवार से टक्कर ले रहे हैं.
छपरा से जन सुराज के उम्मीदवार जयप्रकाश सिंह हैं जो हिमाचल प्रदेश कैडर के 2000 बैच के आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं. उन्होंने जुलाई 2024 में वीआरएस लिया और राजनीति में कदम रखा. वे भाजपा की उम्मीदवार छोटी कुमारी और राजद के भोजपुरी अभिनेता शत्रुघ्न यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
कांग्रेस ने रोसेरा सीट से पूर्व आईपीएस अधिकारी बी. के. रवि को टिकट दिया है. वे तमिलनाडु कैडर के 1989 बैच के अधिकारी रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भी काम कर चुके हैं. वहीं दरभंगा की गौरा बौराम सीट से भाजपा ने पूर्व आईआरएस अधिकारी सुजीत कुमार सिंह को मैदान में उतारा है. यह सीट फिलहाल उनकी पत्नी स्वर्णा सिंह के पास है जिन्होंने 2020 में वीआईपी पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी.
सबसे चर्चित नाम पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप वामनराव लांडे का है जो स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में जमालपुर और अररिया से चुनाव लड़ रहे हैं. जनता के बीच 'सुपरकॉप' के रूप में पहचाने जाने वाले लांडे ने 2024 में अपनी नई पार्टी 'हिंदू सेना' लॉन्च की थी. इस तरह बिहार के चुनावी मैदान में इस बार प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए चेहरे चर्चा में हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता उन्हें कितना समर्थन देती है.