Liquor ban in Bihar: बिहार में शराबबंदी के प्रभाव को लेकर पटना हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. अदालत ने एक पुलिस इंस्पेक्टर के खिलाफ जारी किए गए डिमोशन आदेश को रद्द करते हुए यह माना कि शराबबंदी कानून ने तस्करी को बढ़ावा दिया है. अदालत के अनुसार सरकार द्वारा लागू किया गया यह कानून अब अपनी मूल भावना से भटक चुका है और इसके परिणामस्वरूप गरीबों को ज्यादा नुकसान हो रहा है.
कानून बना अधिकारियों के कमाई का जरिया
न्यायमूर्ति पूर्णेंदु सिंह द्वारा 29 अक्टूबर को सुनाए गए इस फैसले में अदालत ने कहा कि बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 का उद्देश्य नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारना और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना था. हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि यह कानून इतिहास की गलत दिशा में चला गया है.
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पुलिस और अन्य संबंधित विभागों के अधिकारियों के लिए यह कानून एक कमाई का एक नया जरिया बन गया है. जबकि तस्करों और बड़े सिंडिकेट ऑपरेटरों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती. कोर्ट की ओर से कहा गया कि बड़े शराब तस्करों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. वहीं अधिकांश मामले गरीबों के खिलाफ दर्ज किए जाते हैं.
पुलिस इंस्पेक्टर मुकेश पासवान से जुड़ा मामला
यह फैसला पुलिस इंस्पेक्टर मुकेश कुमार पासवान द्वारा दायर की गई याचिका के जवाब में आया. मुकेश पासवान जब पटना बाईपास पुलिस स्टेशन में स्टेशन हाउस ऑफिसर के रूप में ड्यूटी कर रहे थे तब उन्हें राज्य सरकार ने निलंबित कर दिया था. सरकार की ओर से यह कहा गया था कि उनके स्टेशन से मात्र 500 मीटर दूर पर छापेमारी के दौरान विदेश शराब मिले हैं. जो की राज्य सरकार द्वारा पहले निकाले गए आदेश के मुताबिक गलत है. राज्य सरकार की ओर से पहले यह कहा गया था कि जिस अधिकारी के क्षेत्र में शराब की तस्करी होगी, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. जिसके बाद पासवान ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
डिमोशन का आदेश रद्द
कोर्ट ने विभागीय जांच में पासवान द्वारा पेश किए गए बचाव को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार द्वारा जारी डिमोशन के आदेश को रद्द कर दिया. अदालत ने यह भी कहा कि यह सजा पूर्व निर्धारित थी और पूरी विभागीय कार्यवाही एक औपचारिकता बन कर रह गई थी. इसके परिणामस्वरूप न्यायालय ने पासवान के खिलाफ की गई सारी विभागीय कार्यवाही को निरस्त कर दिया. इसी के साथ सीएम नीतीश कुमार द्वारा लिए गए इस बड़े निर्णय को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव होना है. जिसमें शराबबंदी का मामला चर्चा में रहने वाला है.