Sushil Modi Passes Away: साल 1973 बिहार के पटना यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव चल रहे थे. चुनाव के नतीजे सामने आए, तो एक साधारण परिवार का लड़का महासचिव चुना जाता है. कहा जाता है कि छात्रसंघ महासचिव चुने जाने के बाद साधारण परिवार का वो लड़का राजनीति में उतना ज्यादा इंट्रेस्ट नहीं लेता था. किसी ने कहा कि राजनीति के मेन स्ट्रीम में आइए, तो उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया. उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों को भी त्याग दिया. कहा जाता है कि ऐसा करने के पीछे उस लड़के को 'आशंका' थी कि कहीं मैं असफल हो गया तो?
हालांकि, इस लड़के का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ बना रहा. पटना यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ महासचिव चुने जाने के करीब 14 साल बाद यानी 1987 सुशील मोदी की शादी हुई. इस शादी में अटल बिहार वाजपेयी भी शामिल हुए. कहा जाता है कि अटलजी ने जब इस साधारण परिवार के लड़के से राजनीति में आने की अपील, तो वे मना नहीं कर पाए. करीब 3 साल बाद यानी 1990 में भाजपा ने उन्हें टिकट दिया और कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले पटना सेंट्रल सीट से चुनावी मैदान में उतार दिया. पहले ही बार में साधारण से लड़के ने तत्कालीन कांग्रेस विधायक अकील हैदर को हरा दिया. फिर ये लड़का बिहार का 'मोदी' बन गया. कहा जाता है कि इसी वक्त से उन्हें बिहार भाजपा का 'संकटमोचक' कहा जाने लगा.
हम बात कर रहे हैं सुशील मोदी की. हालांकि, जीवन के आखिरी पड़ाव में सुशील मोदी कैंसर के खिलाफ जंग से हार गए. सोमवार देर शाम दिल्ली के AIMMS में उन्होंने आखिरी सांस ली. 3 अप्रैल को उन्होंने खुद एक्स पोस्ट कर कैंसर से जंग की जानकारी दी थी.
1996 में बिहार विधानसभा में यशवंत सिन्हा विपक्ष के नेता हुआ करते थे. इसी साल उन्होंने विपक्ष के नेता के पद से इस्तीफा दे दिया था. फिर सुशील मोदी ने सत्ता पक्ष यानी राजद के खिलाफ कमान संभाली और अकेले ही लालू यादव की पार्टी से मुकाबला किया. सुशील मोदी बिहार के चर्चित चारा घोटाले में 5 याचिकाकर्ताओं में से एक थे. इस मामले में लालू प्रसाद को दोषी करार दिया जा चुका है.
सुशील मोदी ने पटना साइंस कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएट थे. जेपी आंदोलन में शामिल होने के कारण सुशील मोदी अपनी मास्टर डिग्री पूरी नहीं कर सके थे. वे 1977 में आरएसएस के प्रचारक बने और दो बार एबीवीपी के सर्वोच्च राष्ट्रीय महासचिव पद पर रहे.
3 दशकों से अधिक समय तक राजनीति का अनुभव रखने वाले सुशील मोदी ने विधायक, एमएलसी, लोकसभा सदस्य और राज्यसभा सांसद समेत विभिन्न पदों पर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया. वे दो बार बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे. पहली बार 2005 से 2013 तक और दूसरी बार 2017 से 2020 तक.
1990 में पटना सेंट्रल विधानसभा सीट से जीत के बाद सुशील मोदी को भाजपा विधायक दल का मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया. 1996 से 2004 तक उन्होंने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में काम किया. 2004 में वे,भागलपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. सुशील मोदी 2020 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ सुशील मोदी के रिश्ते काफी अहम रहे हैं. दोनों नेताओं ने कई सालों तक साथ मिलकर काम किया. 2005 में जब जेडीयू और बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीता था, तो नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री घोषित किया गया था. सुशील मोदी उस समय लोकसभा सांसद थे. तब डिप्टी सीएम बनने के लिए उन्होंने सांसदी से त्यागपत्र दे दिया और बिहार विधान परिषद के सदस्य बन गए. मोदी करीब 11 सालों तक बिहार के डिप्टी सीएम रहे.
2020 में जब भाजपा ने सुशील कुमार मोदी को राज्यसभा में भेजा, तो नीतीश कुमार ने अपने दिल की बात बताई और कहा कि वे उन्हें अपनी टीम में कितना पसंद करते. नीतीश कुमार ने कहा था कि हमने कई वर्षों तक एक साथ काम किया है. हर कोई जानता है कि मैं क्या चाहता था (मोदी को अपनी टीम में रखने के बारे में). हालांकि, पार्टियां अपने फैसले खुद लेती हैं. वे उन्हें बिहार के बजाय केंद्र ले जा रहे हैं. हम उनके लिए खुश हैं.
2022 में जब नीतीश कुमार ने राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों वाले महागठबंधन में शामिल होने के लिए भाजपा से नाता तोड़ लिया, तो नीतीश कुमार ने एक बयान दिया और कहा कि अगर सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री होते, तो ऐसी स्थिति नहीं आती.