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Bihar Election: जात-पात नहीं, अब रोजगार की बात, बिहार की राजनीति में नया मोड़, नए दौर के इन नेताओं के बदले सुर 

2020 में जब तेजस्वी यादव ने पहली बार बेरोजगारी को केंद्र में रखकर 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया, तब उन्होंने युवा वोटर्स को सीधे जोड़ लिया. 2022-23 में बतौर डिप्टी सीएम उन्होंने दावा किया कि 5 लाख नौकरियां दी गईं.

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Edited By: Reepu Kumari
Tejashwi Yadav, Prashant Kishore, Kanhaiya Kumar
Courtesy: Pinterest

Bihar Chunav: बिहार की राजनीति लंबे समय से जात-पात और धर्म की धुरी पर घूमती रही है, लेकिन इस बार चुनावी तस्वीर कुछ अलग नजर आ रही है. राज्य में युवाओं की एक नई लहर बदलाव की मांग कर रही है और नेता भी अब उसी दिशा में बहते दिख रहे हैं. बेरोजगारी, पलायन और विकास जैसे मुद्दे अब पोस्टरों और जनसभाओं में जगह पा रहे हैं.

तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर और कन्हैया कुमार जैसे युवा नेता अब खुद को ‘बदलाव का चेहरा’ बनाकर पेश कर रहे हैं. ये नेता जातिगत समीकरणों से अलग हटकर उन मुद्दों पर फोकस कर रहे हैं जो सीधे बिहार के युवाओं से जुड़े हैं-जैसे रोजगार की कमी और दूसरे राज्यों में पलायन.

तेजस्वी यादव: 10 लाख नौकरियों का वादा और काम की गिनती

2020 में जब तेजस्वी यादव ने पहली बार बेरोजगारी को केंद्र में रखकर 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया, तब उन्होंने युवा वोटर्स को सीधे जोड़ लिया. 2022-23 में बतौर डिप्टी सीएम उन्होंने दावा किया कि 5 लाख नौकरियां दी गईं.

प्रशांत किशोर: पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट से जन नेता तक का सफर

पदयात्रा के जरिए गांव-गांव पहुंचे प्रशांत किशोर अब हर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. उनका फोकस साफ है-बिहार का नौजवान बिहार में ही नौकरी पाए, पलायन ना करे.

कन्हैया कुमार: 'पलायन रोको-नौकरी दो' का नारा

कांग्रेस के युवा चेहरे कन्हैया कुमार ने राज्य में रोजगार की मांग को लेकर पदयात्रा निकाली. उनका आरोप है कि नीतीश सरकार ने 20 सालों में सिर्फ वादे किए, मौके नहीं दिए.

युवा वोटर्स को साधने की होड़

तीनों ही नेता अब उस 70% युवा आबादी को साधना चाहते हैं जिसकी उम्र 35 साल से कम है. ये वही वर्ग है जो शिक्षा लेने के बाद भी बाहर जाने को मजबूर है.

जात-पात से हटकर विकास की राजनीति

इस बार बिहार के युवाओं की प्राथमिकता नौकरी है, न कि जातिगत समीकरण. यही वजह है कि नेताओं को भी अपने मुद्दे बदलने पड़ रहे हैं.

बिहार की राजनीति में अगर यह नई सोच टिकती है, तो यह सिर्फ एक चुनावी बदलाव नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव की शुरुआत भी हो सकती है. बेरोजगारी और पलायन पर फोकस करने वाले ये युवा नेता आने वाले चुनाव को मुद्दों की असली लड़ाई बना सकते हैं.