नई दिल्ली : ओलंपिक को खेलों का महाकुंभ कहा जाता है. जहां पर किसी भी खिलाड़ी या टीम के लिए पदक जीतना वो लम्हा होता है जब ऐसा लगता है मानों उसने पूरी दूनिया के सामने अपना लोहा मनवा दिया हो. ऐसा ही कुछ भारत की हॉकी टीम ने आजादी की तारीख पर गोल्ड जीतकर ओलंपिक में सोने की हैट्रिक लगा कर किया था. यह कारनामा करने वाली टीम की अगुवाई हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद कर रहे थे. हैट्रिक जीतने के पहले भारतीय हॉकी टीम 48 मैच जीतकर, जीत के रथ पर सवार थी लेकिन 1936 में हुए बर्लिन ओलंपिक के पहले भारतीय टीम को मिली एक हार ने कप्तान ध्यानचंद की चिंता बढ़ा दी थी.
लीग मैच में भारत ने किया थी क्लीन स्वीप
भारतीय टीम के कप्तान ध्यानचंद, रूप सिंह और महमूद जाफर ही टीम के मुख्य खिलाड़ी थे. इन तीनों के दम पर भारतीय टीम ने हंगरी को 4-0 से हराया. इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका को 7-0 से और फिर अंतिम लीग मैच में जापान को 9-0 से धूल चटाते हुए भारतीय टीम ने सेमीफाइनल में जगह बनाई थी. जहां सेमीफाइनल में पहले से ही फ्रांस की टीम पहुंच चुकी थी. फ्रांस को बर्लिन ओलंपिक में बहुत ही ताकतवर टीम माना जा रहा था. जिससे भारत का मुकाबला होना था. इन मैचों में कप्तान ध्यानचंद, रूप सिंह और महमूद जाफर ने भारत के लिए 2-2 गोल दागे थे. वहीं अर्नेस्ट गुर्डिसर-कुलेन ने एक गोल किया था.
भारत को नहीं माना जा रहा था गोल्ड का दावेदार
लीग मैचों में विरोधी टीमों को क्लीन स्वीप करने वाली भारतीय टीम के लिए यह माना जा रहा था कि आगे कि लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है. इसलिए बहुत से लोग भारत को गोल्ड के रूप में नहीं देख रहे थे. गोल्ड के सबसे प्रबल दावेदार मेजबान देश जर्मनी को माना जा रहा था. क्योंकि ओलंपिक से पहले जर्मनी हॉकी टीम का प्रदर्शन बहुत ही शानदार रहा था. उस समय के बहुत से अखबार भारतीय टीम को जर्मनी के आगे बड़ी चुनौती नहीं मान रहे थे. भारतीय टीम ने सभी बातों को दरकिनार करते हुए सेमीफाइनल में फ्रांस को 10-0 से हराकर विरोधियों को माकूल जवाब दे दिया था. इस मैच में टीम के हीरो रहे भारत के कप्तान और हॉकी के जादूगर ध्यानचंद ने 4 गोल दागे थे.
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भारतीय टीम नंगे पैर खेली थी फाइनल
सेमीफाइनल की तरह फाइनल मैच में भी भारतीय ने अपना दमदार प्रदर्शन दिखाया. जर्मनी से खेले गए फाइनल मुकाबले में ध्यानचंद गोल करने के दौरान जर्मनी के गोलकीपर से टकरा गए. इस दौरान उनका दांत टूट गया साथ ही उनको चोट भी आई थी. कुछ देर बाद ध्यानचंद फिर मैदान पर लौटे. उस समय भारतीय टीम के पास अच्छे जूते नहीं हुआ करते थे. जिसके कारण दूसरे हाफ में खेलने उतरे ध्यानचंद ने अपना जूता उतार दिया और नंगे पैर से ग्राउंड पर खेलने उतरे. मैच में उन्होंने जर्मनी को ऐसा धोया कि भारतीय टीम ने गोल्ड की हैट्रिक लगा दी. भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दिया था. इस पूरे लीग के अंतिम 5 मैचों में भारत ने 38 गोल दागे थे और मात्र 1 गोल खाए थे. टीम के लिए सबसे ज्यादा गोल कप्तान ध्यानचंद ने दागे थे.
जीत के बाद भी तिरंगे के लिए उदास बैठे थे ध्यानचंद
गोल्ड की हैट्रिक लगाने के बाद भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर स्वामी जगन नाथ ने कहा ,"ध्यानचंद ने उस समय दुनिया के सर्वश्रेष्ठ और महान कप्तान की तरह प्रदर्शन किया." 1975 हॉकी विश्व कप के हीरो और ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने बताया कि जीत के बाद सभी लोग जहां जश्न मना रहे थे वहीं ध्यानचंद एक किनारे उदास बैठे थे. जब उनसे उदास होने का कारण पूछा गया तो ध्यानचंद ने कहा था कि जीत भारत की हुई है लेकिन इस समय हमारे तिरंगे की जगह यूनियन जैक को सम्मान दिया जा रहा है. काश हम सभी के तिरंगे को सम्मान मिलता तो हम भी इस जीत का जश्न मना रहे होते.
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