Insulin: भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या में अब तेजी से इजाफा देखने को मिल रहा है. जब शरीर में इंसुलिन सही मात्रा में नहीं बनता है तो ब्लड में ग्लूकोज की अधिकता हो जाती है. यही स्थिति डायबिटीज कहलाती है. डायबिटीज के मरीजों में ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता है.
एक्सपर्ट्स की मानें तो टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों को हमेशा इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है. वहीं, टाइप-2 वाले रोगियों को पहले दवा से ही ब्लड शुगर के लेवल को कम करने की कोशिश की जाती है. अगर दवा से शुगर लेवल कंट्रोल नहीं होता है तो इंसुलिन के इंजेक्शन देने पड़ते हैं.
इंसुलिन हमारे पैंक्रियास (अग्नाश्य) में बनने वाला एक हार्मोन है. यह ब्लड में शुगर यानि ग्लूकोज के लेवल को मेंटेन करता है. जब किसी समस्या के चलते पैंक्रियाज में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनता है तो व्यक्ति के खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और उसे डायबिटीज की समस्या हो जाती है. इंसुलिन एक ग्लैंड है. कई सारे कार्बोहाइड्रेट्स में ग्लूकोज की मात्रा पाई जाती है.
जब ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा अधिक हो जाती है तो इंसुलिन ग्लूकोज को लिवर में जमा करने लगता है और यह ग्लूकोज तब तक नहीं निकलता है, जब तक ब्लड में शुगर का स्तर सामान्य नहीं हो जाता है. डायबिटीज की समस्या में जब पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता है तो बाहर से इंसुलिन की आवश्यकता होती है.
हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो जब डायबिटीज की दवा के बाद भी मरीज का ब्लड शुगर लेवल (एचबीएवनसी) 7 (HbA1c Level 7) प्रतिशत से कम न हो तो ऐसे व्यक्ति को इंसुलिन का इंजेक्शन लगाना जरूरी हो जाता है.
जिनकी उम्र 1 से 6 साल के बीच है, उनका ब्लड शुगर लेवल 110 से 200 mg/dl के आसपास होना चाहिए. वहीं, 6 से 12 साल के बच्चों का ब्लड शुगर लेवल 100 से 180 mg/dl होना चाहिए. वहीं, 13 से 19 साल वालों का 90 से 150 व 19 साल से ऊपर की उम्र वालों का ब्लड शुगर लेवल 90 से 150 mg/dl के बीच होना चाहिए. अगर किसी का शुगर लेवल 250 mg/dl से ऊपर है तो इसे बहुत ज्यादा माना जाता है. वहीं, 300 mg/dl से ऊपर का ब्लड शुगर लेवल खतरनाक होता है.
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