नई दिल्ली: जैसे-जैसे क्रिसमस का दिन करीब आता है केक की मांग तेजी से बढ़ जाती है. क्रिसमस ट्री, लाइट्स और तोहफों के साथ, केक भी इस त्योहार के सबसे जरूरी प्रतीकों में से एक बन गया है. बच्चों से लेकर बड़ों तक, हर कोई बेसब्री से रिच क्रिसमस केक का एक टुकड़ा खाने का इंतजार करता है. लेकिन बहुत कम लोग इस मशहूर मीठी चीज के पीछे का हैरान करने वाला इतिहास जानते हैं.
क्रिसमस और केक का रिश्ता लोगों की सोच से कहीं ज्यादा पुराना है. पहला क्रिसमस केक असल में केक था ही नहीं. बहुत पहले, यह एक साधारण डिश थी जिसे 'प्लम पॉरिज' कहा जाता था, जो ओट्स और सूखे बेरी से बनती थी. यह पारंपरिक खाना धीरे-धीरे सदियों में बदलकर आज का स्वादिष्ट केक बन गया.
पुराने समय में, क्रिसमस सिर्फ एक दिन नहीं मनाया जाता था. यह एक लंबा त्योहार था जो पूरे एक महीने तक 6 दिसंबर से 6 जनवरी तक चलता था. इस ठंडे सर्दियों के मौसम में, लोग लंबे समय तक जश्न मनाते थे. क्रिसमस से पहले, एडवेंट नाम का एक समय होता था, जब लोग उपवास के नियमों का पालन करते थे और बहुत सादा खाना खाते थे.
जब उपवास का समय खत्म हो जाता था, तो प्लम पॉरिज नाम की एक खास डिश बनाते थे. यह पॉरिज ओट्स, शहद, मसाले और सूखे प्लम या बेरी का इस्तेमाल करके बनाया जाता था. यह गर्म, पेट भरने वाला और सेहतमंद होता था, जो सर्दियों के जश्न के लिए एकदम सही था. उस समय इस डिश को त्योहार की खास चीज माना जाता था.
16वीं सदी तक, प्लम पॉरिज बदलने लगा. लोगों ने इसमें आटा, अंडे, मक्खन और ज्यादा मसाले डालना शुरू कर दिया, जिससे यह डिश गाढ़ी और रिच हो गई. धीरे-धीरे, यह केक जैसा दिखने लगा. अमीर परिवारों ने एक कदम और आगे बढ़कर इसमें सूखे मेवे, चीनी से ढके फल, नट्स और सजावट मिलाई, जिससे यह और भी ज्यादा फेस्टिव और खास बन गया.
समय के साथ, यह डिश क्रिसमस केक के नाम से जानी जाने लगी. 18वीं और 19वीं सदी तक, औद्योगिक क्रांति के दौरान, लोग ज्यादा व्यस्त हो गए और अब पूरे महीने क्रिसमस नहीं मनाते थे. त्योहार को छोटा करके एक मुख्य दिन 25 दिसंबर कर दिया गया.
आज, पारंपरिक क्रिसमस केक एक रिच फ्रूट केक होता है जिसमें रम, दालचीनी, जायफल, चेरी, किशमिश और बादाम भरे होते हैं. हालांकि इसका स्वाद बदल गया है, लेकिन केक में आज भी सदियों का इतिहास छिपा है, जो हर बाइट के साथ बीते समय की क्रिसमस परंपराओं की मीठी याद दिलाता है.