नई दिल्ली: पाकिस्तान में पहली बार आधिकारिक विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है. लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) में शुरू हुई यह पहल वीकेंड वर्कशॉप से चार क्रेडिट वाले नियमित कोर्स तक पहुंच चुकी है.
छात्रों में इसे सीखने का उत्साह है. गुरमानी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. अली उस्मान कासमी के अनुसार, यह पहल 10-15 साल में पाकिस्तानी विद्वानों को गीता-महाभारत में पारंगत बनाएगी और दक्षिण एशिया में सांस्कृतिक पुल बनाएगी.
LUMS में संस्कृत को पढ़ाने की शुरुआत वीकेंड वर्कशॉप के रूप में हुई थी, जो अब पूर्ण डिग्री कोर्स बन चुका है. छात्र बड़े उत्साह और जिज्ञासा से सीख रहे हैं. कई छात्र पहले यह नहीं जानते थे कि हिंदी और संस्कृत अलग भाषाएं हैं. जैसे-जैसे व्याकरण और सुभाषित समझ में आने लगे, उन्हें इस भाषा की तार्किक संरचना और सुंदरता का अनुभव हुआ.
गुरमानी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. अली उस्मान कासमी के अनुसार, पंजाब यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में पाकिस्तान के सबसे समृद्ध, पर कम पढ़े गए संस्कृत अभिलेखागार मौजूद हैं. 1930 के दशक में सूचीबद्ध पांडुलिपियों का अध्ययन अब स्थानीय विद्वानों द्वारा किया जाएगा. इसका उद्देश्य देश में संस्कृत विद्या को फिर से जीवित करना और शोध को बढ़ावा देना है.
फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज के डॉ. शाहिद रशीद कहते हैं कि शास्त्रीय भाषाओं में मानवता का गहरा ज्ञान छुपा है. उन्होंने अरबी-फारसी के बाद संस्कृत का अध्ययन किया और इसे LUMS में पढ़ाना शुरू किया. उनका मानना है कि आधुनिक भाषाएं शास्त्रीय भाषाओं से निकली हैं. छात्रों को यह समझना जरूरी है कि संस्कृत सिर्फ प्राचीन भाषा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और दार्शनिक ज्ञान की धरोहर है.
LUMS में संस्कृत का कोर्स विश्वविद्यालय के बहुभाषीय वातावरण का हिस्सा है, जिसमें सिंधी, पंजाबी, बलोची, अरबी और फारसी पहले से पढ़ाई जा रही हैं. डॉ. कासमी और डॉ. रशीद का मानना है कि संस्कृत किसी एक धर्म की नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर है. इस पहल से दक्षिण एशिया में भाषाई दीवारें कम होंगी और संवाद के नए पुल बनेंगे.