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India Daily

बांग्लादेश अपने संविधान की करने जा रहा है हत्या! 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्द को हटाने की हुई सिफारिश

आयोग ने दोनों सदनों के चुनाव प्रणाली में बदलाव का प्रस्ताव दिया है. निचले सदन में बहुमत प्रतिनिधित्व होगा, जबकि ऊपरी सदन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का पालन किया जाएगा. आयोग का मानना है कि यह बदलाव बांग्लादेश में सत्ता के असंतुलन को दूर करने में मदद करेगा और लोकतंत्र को मजबूत करेगा.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
Recommendation to remove secular and socialism from constitution of Bangladesh
Courtesy: Social Media

बांग्लादेश में संविधान सुधार आयोग ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें उसने देश के संविधान से 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे शब्दों को हटाने का सुझाव दिया है. यह रिपोर्ट अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को सौंपी गई. आयोग के अनुसार, ये बदलाव बांग्लादेश के मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक हालात के अनुसार जरूरी हैं.

रिपोर्ट में, आयोग ने बांग्लादेश के संविधान से तीन महत्वपूर्ण राज्य सिद्धांतों — धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रीयता — को हटाने का प्रस्ताव किया. इसके स्थान पर आयोग ने नए राज्य सिद्धांतों की सिफारिश की, जिनमें "समानता", "मानव गरिमा", "सामाजिक न्याय", "बहुलवाद" और "लोकतंत्र" शामिल हैं. इन सिद्धांतों को 1971 के मुक्ति संग्राम और 2024 के छात्र आंदोलन की भावना को ध्यान में रखते हुए रखा गया है. आयोग के अध्यक्ष अली रियाज ने कहा कि "हमने संविधान के प्रस्तावना में सिर्फ 'लोकतंत्र' को बनाए रखने की सिफारिश की है, जबकि बाकी सभी सिद्धांतों को बदला गया है."

दो सदनों वाली संसद की सिफारिश

इसके अतिरिक्त, आयोग ने बांग्लादेश में द्व chambers (दो सदनों वाली) संसद बनाने का भी प्रस्ताव दिया. नए संसद के निचले सदन का नाम 'नेशनल असेंबली' होगा, जिसमें 400 सदस्य होंगे, और ऊपरी सदन का नाम 'सेनेट' होगा, जिसमें 105 सदस्य होंगे. आयोग ने यह भी सुझाया कि संसद का कार्यकाल वर्तमान पांच वर्षों के बजाय चार वर्षों का हो.

प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर सीमा

आयोग ने प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर भी सीमा लगाने की सिफारिश की है. इसके तहत प्रधानमंत्री का कार्यकाल दो बार तक सीमित किया जाएगा. यह कदम इसलिए जरूरी बताया गया क्योंकि पिछले 16 वर्षों में बांग्लादेश में प्रधानमंत्री के कार्यालय में अत्यधिक शक्ति संकेंद्रित होने के कारण लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में असंतुलन पैदा हुआ था.

आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि एक नया संविधानिक निकाय, जिसे 'नेशनल कंस्टीट्यूशनल काउंसिल' कहा जाएगा, स्थापित किया जाए. इस निकाय का उद्देश्य तीनों शाखाओं के बीच चेक और बैलेंस स्थापित करना होगा. इसमें राष्ट्रपति, प्रधान न्यायधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता जैसे लोग शामिल होंगे.

संविधान में बदलाव के लिए जनमत संग्रह की सिफारिश

आयोग ने संविधान में बदलाव के लिए जनमत संग्रह प्रणाली को फिर से लागू करने का भी प्रस्ताव दिया है. वर्तमान में, संसद अपने आप संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन आयोग का मानना है कि बदलावों के लिए जनमत संग्रह प्रक्रिया को पुनः लाया जाना चाहिए ताकि आम जनता की राय भी ली जा सके.

बांग्लादेश में राजनीति और विरोध

बांग्लादेश के संविधान में किए गए इन प्रस्तावित बदलावों को लेकर देश की राजनीति में हलचल मच गई है. 2024 के छात्र आंदोलन के बाद सत्ता से बाहर हुई शेख हसीना की पार्टी को यह बदलाव पसंद नहीं आ रहे हैं. वहीं, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने भी चुनाव के लिए सुधारों का समर्थन किया है, लेकिन उनकी मांग है कि चुनाव समय से पहले कराए जाएं. इन परिवर्तनों के बाद, बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति में बड़ा बदलाव आ सकता है, जो देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है.