भारत और बांग्लादेश के बीच हाल के दिनों में शेख हसीना प्रत्यर्पण मामले को लेकर नए घटनाक्रम सामने आए हैं. बांग्लादेश की ओर से भेजे गए औपचारिक अनुरोध पर भारत ने पहली बार स्पष्ट बयान जारी करते हुए कहा है कि अनुरोध न्यायिक और आंतरिक कानूनी प्रक्रियाओं के तहत जांच में है. हसीना को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बाद मामला और संवेदनशील हो गया है. भारत ने दोहराया कि वह बांग्लादेश के लोकतांत्रिक व सामाजिक हितों के प्रति प्रतिबद्ध है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि बांग्लादेश की ओर से भेजा गया प्रत्यर्पण अनुरोध भारत को मिला है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अनुरोध वर्तमान में न्यायिक और आंतरिक कानूनी प्रक्रियाओं के तहत जांच में है. उनके मुताबिक, भारत बांग्लादेश में शांति, स्थिरता, समावेशन और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए सभी हितधारकों के साथ सकारात्मक संवाद जारी रखेगा.
ढाका ने पहली बार दिसंबर में और हाल ही में दोबारा प्रत्यर्पण अनुरोध भेजा था. इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल (ICT) ने जुलाई 2024 के प्रदर्शनों से जुड़े मानवता-विरोधी अपराधों में शेख हसीना को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई. इसी मामले में उनके दो सहयोगियों को भी सजा हुई- पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमान खान कमाल को मौत की सजा, जबकि पूर्व आईजीपी अब्दुल्ला अल-मामून, जिन्होंने सरकारी गवाह बनकर बयान दिया, को पांच साल कैद की सजा दी गई.
सजा सुनाए जाने के बाद शेख हसीना ने कहा कि यह फैसला अवैध और “रिग्ड” है, क्योंकि इसे एक गैर-निर्वाचित अंतरिम सरकार ने पारित किया है, जिसके पास कोई लोकतांत्रिक जनादेश नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि इस फैसले का उद्देश्य बांग्लादेश की अंतिम निर्वाचित प्रधानमंत्री को हटाना और अवामी लीग को कमजोर करना है, ताकि अंतरिम सरकार की नाकामियों से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके.
अपने बयान में हसीना ने कहा कि मौत की सजा की मांग अंतरिम सरकार में बैठे कट्टरपंथी तत्वों की “खूनी मंशा” को दिखाती है. उन्होंने दावा किया कि डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाले हालिया अंतरिम प्रशासन ने देश को अराजकता और हिंसा की स्थिति में धकेल दिया है. उनके अनुसार, ICT के ट्रायल जुलाई–अगस्त 2025 की घटनाओं को समझने के बजाय केवल अवामी लीग को बलि का बकरा बनाने की कोशिश थे.
हसीना का आरोप है कि ICT के ट्रायल का उद्देश्य न्याय स्थापित करना नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक नैरेटिव तैयार करना था जिससे अंतरिम सरकार अपने विफल शासन से ध्यान हटवा सके. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की जनता इस “झूठे न्याय” को समझती है और उन्हें लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिशों को बर्दाश्त नहीं करेगी.