नई दिल्ली: बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बीएनपी अध्यक्ष खालिदा जिया के निधन ने देश की राजनीति को गहरे सवालों के सामने खड़ा कर दिया है. मंगलवार 30 दिसंबर की सुबह ढाका के एवरकेयर अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. वह 80 वर्ष की थीं. उनके जाने से ठीक पहले बांग्लादेश फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव की तैयारी में जुटा था.
यह चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि दशकों बाद यह पहला चुनाव होगा जिसमें दो बेगमों की सीधी टक्कर नहीं होगी. खालिदा जिया के निधन से बीएनपी के सामने नेतृत्व की पूरी जिम्मेदारी अब उनके बेटे तारिक रहमान पर आ गई है. 17 साल के लंबे राजनीतिक वनवास के बाद तारिक की हालिया वापसी को पहले ही बीएनपी के लिए नई ऊर्जा माना जा रहा था.
अब मां के निधन के बाद यह संभावना और मजबूत हो गई है कि पार्टी को सहानुभूति वोट मिल सकता है. बांग्लादेश की राजनीति में सहानुभूति का प्रभाव पहले भी देखा गया है और बीएनपी को इसका लाभ मिलने की उम्मीद की जा रही है.
खालिदा जिया पिछले 36 दिनों से अस्पताल में भर्ती थीं और उनकी हालत गंभीर बताई जा रही थी. इसके बावजूद उन्होंने 29 दिसंबर को बोगरा 7 सीट से अपना नामांकन दाखिल कराया था. इस सीट का बीएनपी के लिए भावनात्मक और राजनीतिक महत्व है. यह पार्टी संस्थापक जियाउर रहमान का गृह क्षेत्र रहा है और खालिदा जिया यहां से तीन बार चुनाव जीत चुकी थीं. पार्टी को उम्मीद थी कि वह स्वस्थ होकर फिर से सक्रिय राजनीति में लौटेंगी.
अब यह जिम्मेदारी तारिक रहमान के कंधों पर है. तारिक रहमान बोगरा 6 और ढाका 17 सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. उन्होंने अपनी वापसी के बाद कहा है कि वह ऐसा बांग्लादेश बनाना चाहते हैं जहां सभी धर्मों के लोग सुरक्षित महसूस करें. उन्होंने शांति और संयम बनाए रखने की अपील भी की है.
दूसरी ओर जमात ए इस्लामी को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है. शेख हसीना की अवामी लीग के चुनाव से बाहर होने के बाद जमात को खुला मैदान मिलता दिख रहा है. अंतरिम यूनुस सरकार में जमात से बैन हटने के बाद कट्टरपंथी घटनाओं में तेजी आई है. युवाओं के एक वर्ग का झुकाव भी जमात समर्थित राजनीति की ओर देखा जा रहा है. नेशनल सिटीजन पार्टी और जमात के गठजोड़ ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर खालिदा जिया के निधन के बाद सहानुभूति बीएनपी और तारिक रहमान की ओर जाती है तो जमात को सीमित किया जा सकता है. अब सभी की नजर 12 फरवरी को होने वाले चुनाव और उससे पहले बनने वाले माहौल पर टिकी हुई है.