नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ प्लान पर अब कानूनी संकट गहराता नजर आ रहा है. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में 5 नवंबर यानी आज टैरिफ को लेकर अहम सुनवाई होने वाली है. यह केस ट्रंप सरकार द्वारा कई देशों पर लगाए गए टैरिफ को लेकर है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई थी. यदि कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ फैसला दिया, तो अमेरिकी सरकार को अरबों डॉलर लौटाने पड़ सकते हैं.
ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान चीन, भारत, और अन्य देशों पर भारी टैरिफ लगाए थे. उन्होंने इसे अमेरिका की आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी बताया था, लेकिन विरोधियों ने इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों का उल्लंघन करार दिया. कई देशों ने ट्रंप सरकार के इस कदम का विरोध किया और अदालत में चुनौती दी. अब यह मामला अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जहां इस बात पर बहस हो रही है कि क्या राष्ट्रपति ने 'इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनोमिक पावर्स एक्ट' के तहत दी गई शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया.
रिपोर्ट के मुताबिक निचली अदालतें पहले ही ट्रंप के टैरिफ आदेश को असंवैधानिक करार दे चुकी हैं. दो अदालतों ने स्पष्ट कहा था कि राष्ट्रपति को इस तरह से एकतरफा टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं है. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने के बाद ट्रंप के लिए खतरे की घंटी बजा सकता है. अगर कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ गया, तो अमेरिकी सरकार को उन देशों को टैरिफ की राशि लौटानी होगी जिनसे वसूली की गई थी. यह रकम अरबों डॉलर में है, जिससे ट्रंप प्रशासन को बड़ा आर्थिक झटका लग सकता है.
ट्रंप ने अपने कार्यकाल में चीन पर सबसे भारी टैरिफ लगाए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि चीन अमेरिकी तकनीक की चोरी कर रहा है और व्यापार घाटा बढ़ा रहा है. चीन ने जवाब में अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाकर पलटवार किया और सोयाबीन जैसी वस्तुओं की खरीद बंद कर दी. इससे अमेरिकी किसानों और उद्योगों को बड़ा नुकसान हुआ. वहीं, भारत पर भी ट्रंप ने करीब 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया था क्योंकि भारत रूस से तेल आयात कर रहा था.
अमेरिकी मीडिया के अनुसार, यह केस न केवल ट्रंप की नीतियों पर सवाल खड़ा करेगा, बल्कि भविष्य की अमेरिकी व्यापार नीति की दिशा भी तय करेगा. अगर कोर्ट ने ट्रंप सरकार के खिलाफ फैसला दिया, तो यह इतिहास का सबसे बड़ा टैरिफ रिफंड केस साबित हो सकता है.