Donald Trump H1-B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ी घोषणा की है, जिसमें कहा गया है कि H-1B वीजा आवेदन के लिए अब हर साल $100,000 (भारतीय कीमत के अनुसार करीब 88 लाख रुपये) की फीस ली जाएगी. यह वीजा हाई स्किल वाले विदेशी वर्कर्स के लिए है. इस प्रोग्राम में कुछ बदलाव किए गए हैं, क्योंकि यह प्रशासन की निगरानी में है.
H-1B वीजा का उद्देश्य विदेशी विशेषज्ञों को हाई स्किल वाली नौकरियों के लिए लाया जाना है. इन नौकरियों में अमेरिकी नागरिकों और स्थायी निवासियों को भरना मुश्किल हो जाता है.
#WATCH | President Donald J Trump signs an Executive Order to raise the fee that companies pay to sponsor H-1B applicants to $100,000.
White House staff secretary Will Scharf says, "One of the most abused visa systems is the H1-B non-immigrant visa programme. This is supposed to… pic.twitter.com/25LrI4KATn— ANI (@ANI) September 19, 2025Also Read
इस प्रोग्राम का इस्तेमाल कुछ कंपनियां विदेशी वर्कर्स को कम सैलरी पर रखने के लिए कर रही हैं. ये लोग $60,000 एनुअल सैलरी पर तैयार हो जाते हैं. यह सैलरी अमेरिका के वार्षिक कमाई पर काम करने के लिए तैयार होते हैं. यह वेतन अमेरिका के टेक्निकल स्टाफ की तुलना में काफी कम है, जो $100,000 से ऊपर है. ट्रंप ने शुक्रवार को कहा, “टेक्निकल इंडस्ट्री इस कदम का विरोध नहीं करेगी.मुझे लगता है कि वे इस बदलाव से खुश होंगे."
बता दें कि H-1B प्रोग्राम 1990 में शुरू किया गया था, जो उन लोगों के लिए था जिनके पास बैचलर डिग्री या उससे ऊपर की डिग्री थी. इन्हें साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्समैटिक्स क्षेत्रों में नौकरी पाने में मुश्किल होती थी, जिसके चलते इन्हें नौकरी दी जाती है. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे कंपनियां विदेशी वर्कर्स को कम वेतन पर काम पर रखने लगती हैं, जिससे अमेरिकी वर्कर्स को नुकसान होता है और वर्कर्स के अधिकारों की भी अनदेखी होती है.
इस प्रोग्राम के तहत हर साल 85,000 वीजा दिए जाते हैं, जो लॉटरी सिस्टम के जरिए डिस्ट्रीब्यूट किए जाते हैं. इस साल Amazon को सबसे ज्यादा H-1B वीजा (करीब 10,000 वीजा) मिले. इसके बाद Tata Consultancy, Microsoft, Apple और Google का नंबर आता है. कैलिफोर्निया राज्य में सबसे ज्यादा H-1B वीजा होल्डर हैं.